साहित्य, कला संस्कृति, पत्रकारिता और सिनेमा में सामांतर रूप से अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले एक उम्दा कलाकार थे बलराज साहनी. भारतीय सिनेमा के दिग्गज अभिनेता बलराज साहनी पर दर्शाया गया गीत “ए मेरी जोहरा जंबी” आज भी सबकी जुबा पर जिन्दा है.

बलराज साहनी को एक ऐसे अभिनेता के रूप में जाना जाता था, जिन्हें रंगमंच और फिल्म दोनों ही माध्यमों में समान दिलचस्पी थी. उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों को पर्दे के पात्र से भावनात्मक रूप से जोड़ देते थे.

1913 में रावलपिंडी में एक आर्यसमाजी परिवार में जन्मे साहनी का नाम पहले युद्धिष्ठर रखा गया था लेकिन उनकी बुआ ठीक से युद्धिष्ठर नाम का उच्चारण नहीं कर पाती थीं इसलिए उनका नाम बदलकर बलराज रखा दिया गया.

शुरू से ही बलराज साहनी कुछ अलग करना चाहते थे इसलिए उनका मन ना तो पिता के व्यापार में लगा और ना ही किसी नौकरी में. 1946 में फिल्म 'धरती के लाल' से फिल्मी दुनिया में कदम रखने वाले बलराज को बतौर अभिनेता अपनी पहचान बनाने के लिए 5 साल तक कड़ा संघर्ष करना पड़ा.

1951 में आई फिल्म 'हमलोग' से बलराज साहनी को लोग जानने लगे और तभी दो साल बाद 1953 में आई बिमल राय की फिल्म ' दो बीघा जमीन' बलराज साहनी के जीवन में मील का पत्थर साबित हुई. इस फिल्म की कहानी हमारे समाज की कड़वी सच्चाई थी.

फिल्म 'दो बीघा जमीन' में एक रिक्शेवाले के किरदार को पर्दे पर जीवंत करने के लिए बलराज ने कोलकाता की सड़कों पर 15 दिनों तक खुद रिक्शा चालाया था. वो बलराज का अभिनय ही था जिसकी बदौलत आज भी 'दो बीघा जमीन' को भारतीय सिनेमा के इतिहास की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक माना जाता है.

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