भारतीय फिल्म स्टूडियो ‘‘ईरोज इंटरनेशनल’’ ने एक बार फिर बंगला भाषा की फिल्म ‘‘हामी’’ के साथ हाथ मिलाया है. निर्देशक नंदिता रौय और शिबोप्रसाद मुखर्जी की इस फिल्म में खुद शिबोप्रसाद मुखर्जी के साथ गार्गी रौय चैधरी, सुजान मुखर्जी, चुरनी गांगुली, खरज मुखर्जी, कोनिनिका बेनर्जी, अपराजिता आध्या और तनुश्री शंकर ने अहम किरदार निभाए हैं.

18 मई को प्रदर्शित हो रही सामाजिक फिल्म ‘‘हामी’’ में दो बच्चों की खूबसूरत व मासूम शुद्ध प्रेम कहानी देखते हुए हर दर्शक को अपना बचपना याद आएगा. इसी के साथ फिल्म में कई साल उठाए गए हैं, जिनके उत्तर जरुरी हैं. मसलन, जब समाज छोटे छोटे बच्चों में अलगाव पैदा कर उन्हें अकेला कर देता है, तो किसे दोषी ठहराया जाना चाहिए? किसी एक इंसान को या पूरी सामाजिक प्रणाली को? आखिर पालको व शिक्षकों का विश्वास कहां गायब हो गया? हम अपने बच्चों की मासूमियत का सिंचन क्यों नहीं करते हैं?

2014 में सफलतम फिल्म ‘‘रामधेनु’’ में एक मध्यमवर्गीय दंपति द्वारा अपने बच्चे को एक प्रतिष्ठित स्कूल में प्रवेश दिलाने की कोशिश की कहनी पेश की थी. इस फिल्म के सफल होने के बाद नंदिता रौय व शिबो प्रसाद मुखर्जी ने स्कूल में प्रवेश पाने के बाद बच्चों की मनः स्थिति और समाज के दबाव को रेखांकित करने वाली फिल्म बनाने का विचार कर ‘‘हामी’’ बनायी.

फिल्म ‘‘हामी’’ की कहानी स्कूल के दो बच्चों भुटू और चीनी की दोस्ती की है, जो कि बहुत ही अलग अलग पृष्ठभूमि से आते हैं. भुटू के माता पिता समृद्ध और एक बड़ी फर्नीचर की दुकान के मालिक हैं. जबकि चिनी के माता पिता श्रीनिजो व रीना परिस्कृत व अभिजात वर्ग से हैं. शिक्षा जगत से जुड़े हुए हैं. पर भुटू व चीनी की दोस्ती काफी मजबूत है. लेकिन नियति का खेल कुछ ऐसा होता है कि दोनों के माता पिता इन बच्चों को एक दूसरे से अलगकर इनकी दोस्ती तुड़वा देते हैं. हालांकि स्कूल की उपप्रधानाचार्य व छात्रों की कौंसिलर अपनी तरफ से समझाने का भरसक प्रयास करती है. अंततः क्या होता हैं? क्या बच्चों की मासूमियत के सामने माता पिता झुकेंगे या नहीं? यही अहम सवाल है.

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