मौडलिंग से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री गीतांजलि थापा सिक्किम की हैं. उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि वह अभिनेत्री बनेंगी, लेकिन एक आडिशन ने उनकी जिंदगी बदल दी और वह इस क्षेत्र में आ गयीं. इसमें उनका साथ दिया, उनके माता-पिता ने, जिन्होंने उनके हर फैसले का स्वागत किया. स्वभाव से हंसमुख गीतांजलि ने हिंदी फिल्मों में डेब्यू फिल्म ‘आई डी’ से किया. जिसमें उनके काम को सराहना मिली और उन्हें लौस एंजिलस फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड मिला. हालांकि उन्होंने लीक से हटकर फिल्में की, पर उन्हें कई पुरस्कार बेहतरीन एक्टिंग के लिए मिले हैं. फिल्म ‘लायर्स डाइस’ भी उसकी ऐसी ही फिल्म है, जिसके लिए उन्हें साल 2013 में बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल फिल्म अवार्ड मिला. वह शांत और दृढ़ हैं और हर फिल्म को सोच समझकर साईन करती हैं. इन दिनों उनकी फिल्म ‘बाइस्कोपवाला’ रिलीज पर है. पेश है उससे हुई बातचीत के कुछ अंश.

इस फिल्म को चुनने की खास वजह क्या है?

पहले आडिशन हुआ और मैं चुन ली गयी. जब मैंने इसकी स्क्रिप्ट पढ़ी, तो मेरे रोंगटें खड़े हो गए. ये एक बहुत ही अच्छी कहानी है. बचपन में मैंने टैगोर की काबुलीवाला की कहानी पढ़ी थी. उसकी एक्सटेंडेड कहानी है. जो काफी रुचिकर है. इसमें मैंने मिनी की भूमिका निभाई है. अधिकतर फिल्में पुरुष प्रधान होती है, ऐसे में इसमें मुझे मुख्य भूमिका के अलावा बहुत कुछ करने को मिल रहा है, जो मेरे लिए अच्छा है.

फिल्मों में आना इत्तफाक था या शुरू से शौक था?

इत्तफाक ही था. मैं दिल्ली में सिक्किम से पढ़ने आई थी. वहां मेरे एक दोस्त ने आडिशन के लिए बुलाया, मैं गयी और चुन ली गयी और काम मुंबई में था, इसलिए मुंबई आ गई. यहां आने पर मैंने सोचा कि मैं यहीं रहकर कुछ काम करुंगी. मैं आडिशन देने लगी और कई अच्छी फिल्में जैसे आई डी और लायर्स डाइस मिली. जिसमें मुझे कई पुरस्कार भी मिले. इस दौरान मुझे कई अच्छे लोग मिले जिन्होंने एक्टिंग, साउंड, कैमरा फेसिंग, डायरेक्शन, प्रोडक्शन आदि सबके बारें में बताया, इससे मुझे फिल्मों की बारीकियों को सीखने के मौके के साथ हिम्मत भी मिली और मैं इस क्षेत्र में आ गयी.

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