मुंबई के डौन से राजनेता बने अरुण गवली के जीवन पर फिल्मकार आशिम अहलूवलिया की फिल्म ‘डैडी’ में अर्जुन रामपाल के दमदार अभिनय के अलावा कुछ नहीं है.

यह कहानी है मुंबई के वर्ली इलाके की दगड़ी चौल में रहने वाले एक गरीब मिल मजदूर के बेटे अरुण गवली की, जो कि गैंगस्टर की राह पकड़कर खुद को गैंगस्टर के रूप में इस कदर स्थपित करता है कि लोग उससे डरने लगते हैं और फिर वह राजनीति में कूद कर चुनाव लड़ता है. उसके निर्वाचन क्षेत्र के लोग उससे डरते हैं. वह उसे चुनाव जिताने में कमी नहीं रखते.

फिल्मकार ने ‘सत्यकथा’ बयां करने के दावे के साथ फिल्म में डैडी यानी कि अरुण गवली को कठोर, निर्दयी, ठंडे खूनी की बजाय अनिच्छा से गैंगस्टर बने इंसान के रूप में पेश किया है, जो कि एक पारिवारिक इंसान है. वह दोस्तों का दोस्त है और अपने परिवार, अपनी पत्नी व बेटियों से बहुत प्यार करता है. उसकी आपराधिक गतिविधियां अपने दोस्तों के प्रति निष्ठा से संतुलित है. अर्थात अब तक लोगों के दिमाग में अरुण गवली की जो छवि रही है, उससे यह कहानी मेल नहीं खाती.    

फिल्मकार ने उन्हें एक गैंगस्टर की बनिस्पत एक पारिवारिक इंसान के रूप में पेश करने का ज्यादा प्रयास किया है. इसके बावजूद फिल्म में मार धाड़ व खून खराबा सहित सभी आम मसाला फिल्मों के फार्मूले हैं. परिणामतः कहानी का मजा किरकिरा हो जाता है. फिल्मकार एक अपराधिक प्रवृत्ति के इंसान की अतीत के कुछ घटनाक्रमों व अतीत की कहानी को रोचक तरीके से पेश कर भी अपनी फिल्म को मनोरंजक व रोचक बनाते रहे हैं, पर इस आधार पर भी आशिम अहलूवालिया बुरी तरह से विफल रहे. घटिया कहानी और नाटकीय संवादों से युक्त इस फिल्म में ऐसा कुछ भी रोचक नहीं है, जिसकी वजह से दर्शक फिल्म को देखना चाहे.

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