हिंदी फिल्मों में ‘सिस्टम’ पर फिल्में हमेशा बनती रही है. फिल्म ‘मदारी’ सिस्टम में हुई गलतियों की जानकारी देकर भविष्य में ऐसा न हो, उस पर अगाह करने की बात कही गई है. ये फिल्म हमारे वोटर्स और यूथ के लिए है जो अपना वोटिंग समझ कर करें.

निर्देशक निशिकांत कामत ने आज से 8 साल पहले अभिनेता इरफान खान के साथ ‘मुंबई मेरी जान’ बनाई थी और एक बार फिर से दोनों ने साथ काम किया है.

यह फिल्म राजनीति और राजनेता दोनों पर कटाक्ष करती है, जिसमें घुसकर हर इंसान आत्मसुख का आदि बन जाता है. फिर चाहे वोटर्स को कुछ भी हो, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता.

फिल्म में इरफ़ान खान ने मदारी की भूमिका अच्छी तरह से निभाया है. पूरी फिल्म में वे हावी रहे, लेकिन उनके किडनैपर का गेटअप कुछ अधिक समय तक चला जिसे हॉल में बैठकर देखना मुश्किल हो रहा था.

कहानी इस प्रकार है.

फिल्म के शुरू में होम मिनिस्टर (तुषार दलवी) का बेटा किडनैप हो जाता है. किडनैप करने वाला निर्मल कुमार (इरफान खान) होता है. होम मिनिस्टर अपनी पूरी ताकत अपने बेटे रोहन को पाने के लिए लगा देता है. जिसमें साथ देता है जिम्मी शेरगिल जो एक विजिलेंस ऑफिसर है. लेकिन निर्मल की चालाकी के आगे वह कुछ भी करने में नाकाम रहता है. किडनैपर बनने के पीछे निर्मल की कुछ मंशा है जिससे वह सबको अगाह करवाना चाहता है. बिना हिंसा के वह उसे अंजाम तक पहुचाता है.

फिल्म में जिम्मी शेरगिल की कुछ खास अभिनय नहीं थी. फिल्म की रफ्तार धीमी थी. फिल्म की स्क्रिप्ट अच्छी तरह लिखी नहीं गई. जिसकी कमी बार-बार दिखी. फिल्म को और छोटा बनाया जा सकता था. बीच-बीच में इरफान का अचानक रोना-चिल्लाना समझ से परे थी. इरफान एक अच्छे कलाकार है, अपने आँखों से वह पूरी कहानी कहने में समर्थ होते है. ऐसे में उन्हें अच्छी तरह से परदे पर उतारने में निशिकांत इस बार असफल रहे. बहरहाल फिल्म के कुछ संवाद और गाना ‘डम डमा डम’ सटीक थे, जो फिल्म को मनोरंजक बना रहे थे. इसे टू स्टार दिया जा सकता है.  

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