सुप्रिया की मां दीना पाठक और उन की बड़ी बहन रत्ना पाठक दोनों अभिनय की दुनिया में सक्रिय थीं, लेकिन सुप्रिया ने अभिनय में आने की कभी नहीं सोची थी. वे तो एक डांस टीचर बनना चाहती थीं. पर मां के कहने पर उन्होंने एक नाटक में हिस्सा लिया और अपने अभिनय के लिए वाहवाही पाई. इस के बाद तो उन के अभिनय का सफर शुरू हुआ, जो फिल्म ‘कलयुग’ (1981) से ले कर आज तक यानी फिल्म ‘किस किस को प्यार करूं’ (2015) तक लगातार जारी रहा है. फिल्म ‘बाजार’ की दबीसहमी लड़की जो कंधे झुका कर चलती है, से ले कर फिल्म ‘विजेता’ की दबंग लड़की, जो पुरुषों के इस समाज में बराबरी से चलती है, तक के हर किरदार को बड़ी ही बेबाकी से फिल्मों में जीने वाली और बौलीवुड से ले कर छोटे परदे तक में अपनी अदाकारी का जलवा दिखा चुकीं सुप्रिया पाठक ने एक शो के दौरान अपनी अभिनय यात्रा और जिंदगी के कुछ खास लमहों को हमारे साथ बांटा. यहां पेश हैं, उस के कुछ खास अंश:

काफी लंबे समय के बाद आप छोटे परदे पर आई हैं. दूर रहने का कोई कारण?

यह सच है कि मैं काफी लंबे समय के बाद छोटे परदे पर आई हूं, पर इस के पीछे कोई खास कारण नहीं है. मैं मानती हूं कि डेली सोप यानी रोज आने वाले धारावाहिक को बिना वजह लंबा नहीं खींचना चाहिए. कई शो ऐसे भी हैं जो 7-8 सालों से लगातार चल रहे हैं. मुझे लगता है कि यह उन दर्शकों और कलाकारों के साथ अन्याय है जो इस शो का हिस्सा बने हैं. एक ही कैरेक्टर के रोल में 6-7 साल तक लगातार काम करने से कोई भी कलाकार अपनी वास्तविकता खोने लगता है और दर्शक ऊबने लगते हैं. मुझे उन शोज के लिए जिन को मैं कर रही थी, ऐसा लगने लगा कि ये ज्यादा खींचे जा रहे हैं, इसलिए उन से दूर हो गई. रही बात छोटे परदे की तो मैं उस से दूर नहीं रह सकती क्योंकि वही एक ऐसा माध्यम है जिस के द्वारा मैं अपनी बात कह सकती हूं. यह बहुत से लोगों को आप से जोड़ता है और इस में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए फिल्मों की तुलना में अधिक स्पेस होता है.

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