पता नहीं फिल्मकारों को कब समझ में आएगा कि काठ की हांडी बार बार आग पर नहीं चढ़ती. देओल परिवार की 2011 की सफल हास्य फिल्म ‘‘यमला पगला दीवाना’’ का सिक्वल 2013 में ‘यमला पगला दीवाना 2’ के नाम से आया, तब इसे दर्शकों ने पसंद नहीं किया था. मगर पूरे पांच साल बाद उसका एक और सिक्वल ‘‘यमला पगला दीवना फिर से’’ लेकर आए हैं, जिसे देखकर दर्शक यही कहता है- कहां फंसाओ नाथ.

फिल्म की कहानी के केंद्र में अमृतसर के आयुर्वेदिक वैद्य पूरन सिंह (सनी देओल), उनका भाई काला (बौबी देओल) और किराएदार जयंत परमार (धर्मेंद्र) हैं. जयंत परमार पेशे से वकील हैं और साइड ट्रेक वाले स्कूटर पर सवारी करते रहते हैं. उस वक्त पुरानी फिल्मों के गाने बजते हैं.. वैद्य पूरनसिंह चुप रहते हैं, पर जब कोई उन्हें गुस्सा दिला दे, तो वह उसे छोड़ते नहीं हैं. पूरे शहर में पूरनसिंह की काफी इज्जत है, जबकि 40 साल के अविवाहित काला की कोई इज्जत नहीं है. काला तो कनाडा जाने का सपने देखता रहता है. पूरन सिंह के पास पुश्तैनी ‘‘वज्र कवच’’ नामक दवा है, जिसका तोड़ किसी के पास नही है. यह दवा नपुंसकता व पिंपल दूर करने के साथ ही हर बीमारी का इलाज कर देती है. फिल्म में दावा किया गया है कि अकबर को जब वज्र कवच दवा दी गयी, तभी उनकी संतान हुई. बहरहाल, कई मल्टीनेशनल कंपनियां ‘वज्र कवच’ का फार्मूला लेना चाहती हैं. एक दवा कंपनी के मालिक माफतिया (मोहन कपूर) काला की मदद से पूरन सिंह से बात करता है, पर बात नहीं जमती. माफतिया, पूरनसिंह को धमकी देकर चला जाता है.

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