1795 के ऐतिहासिक घटनाक्रम पर एक्शन प्रधान रोमांचक फिल्म तमाम बडे़ बड़े तामझाम व कलाकारों की मौजूदगी के बावजूद वाहियात फिल्म साबित होती है. इस फिल्म को देखते समय मुझे बार बार एक स्टूडियो के सीओओ का यह कथ्य याद आ रहा था कि फिल्म की सफलता के लिए एक बेहतरीन रणनीति के साथ सिनेमाघरों में प्रदर्शित करना जरुरी होता है. इस हिसाब से ‘यशराज फिल्मस’ की रणनीति सफल रही.

पहली बात तो पिछले दो सप्ताह के दौरान ऐसी एक भी फिल्म प्रदर्शित नहीं हुई, जिसे दर्शक देखना चाहता. दूसरी बात ‘‘ठग्स आफ हिंदोस्तान’’ को दीवाली की चार दिन की छुट्टी का फायदा भी मिलना है. धार्मिक सोच के अनुसार दीवाली की रात सोना नहीं चाहिए. इसलिए इस फिल्म के दीवाली की रात बारह बजे के बाद ही कई शो रख दिए गए, जिनकी कीमत भी काफी रखी गयी. सुबह पांच बजे से शुरू हुए हर शो के बाद टिकट की दरें बढ़ती गयीं. मुंबई से दूर दराज के इलाकों में डेढ़ सौ रूपए से सात सौ रूपए की टिकट दरें रही. तो चार दिन की छुट्टियों में यह फिल्म काफी कमाई कर लेगी, मगर यह ऐसी फिल्म नहीं है, जिसे याद रखा जाए.

फिल्म की कहानी 1795 की पृष्ठभमि में बंगाल के पास की रियासत रौनकपुर से शुरू होती है, जिसके राजा है मिर्जा सिकंदर बेग. ‘‘ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी’’ के जौन्ह क्लाइव (लायड ओवेन) उन पर समझौते के लिए दबाव डाल रहे हैं, सिकंदर मिर्जा बेग उनके खात्मे की योजना बना रहे हैं. इसकी खबर क्लाइव को लग जाती है और वह चाल चलकर मिर्जा के बेटे असलम, उनकी पत्नी व उन्हे मार देते हैं. पर मिर्जा की बेटी जफीरा को खुदा बख्श जहाजी उर्फ आजाद (अमिताभ बच्चन) बचाकर ले जाते हैं.

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