अब केंद्र सरकार अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर बचाव की मुद्रा में खड़ी दिखाई देने लगी है. नोटबंदी और फिर जीएसटी को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए वरदान होने का दावा करने वाले नेता बगलें झांकते दिखे. चारों ओर से विरोध के स्वर उठने के बाद सरकार को यूटर्न लेने पर मजबूर होना पड़ा. आखिर 10 नवंबर को गुवाहाटी में हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में सब से बड़ा बदलाव करना पड़ा. 211 कैटेगरी की वस्तुओं पर टैक्स घटाने के साथसाथ दूसरी रियायतें भी देनी पड़ीं.

अब तक 228 कैटेगरी की वस्तुओं पर 28 प्रतिशत टैक्स था. इन में से 178 पर टैक्स 18 प्रतिशत था यानी अब केवल 50 वस्तुओं पर 29 प्रतिशत टैक्स लगेगा. इस के बावजूद अनेक कारोबारी अब भी संतुष्ट नहीं हैं.

मजे की बात है कि अब ये चीजें सस्ती होंगी, महंगी क्यों हुई थीं, किस ने कीं और अब सस्ती कौन करेगा? जीएसटी काउंसिल ने माना है कि छोटे और मझोले उद्योग क्षेत्र में मुश्किलें आ रही हैं, पर अब तक जिन लोगों को नुकसान हो चुका है, वे उबर पाएंगे, कोई गारंटी नहीं है. अब भी अनेक कारोबारों से जुड़े सामानों मसलन सीमेंट, वार्निश, पेंट पर पहले जैसा 28 प्रतिशत टैक्स रखा गया है.

जीएसटी काउंसिल की बैठक में यह भी तय हुआ कि जिन कारोबारियों पर टैक्स की देनदारी नहीं है उन्हें देरी से रिटर्न फाइल करने पर रोजाना सिर्फ 20 रुपए जुर्माना देना होगा. जिन पर देनदारी है उन्हें रोजाना 50 रुपए देना पड़ेगा. अभी यह सब पर 200 रुपए था. पर कोई लाभ नहीं क्योंकि इस से व्यापारियों पर जो मानसिक दबाव की स्थिति थी वह तो अब भी बरकरार रहेगी. 200 रुपए से घटा कर 50 या 20 रुपए करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. ट्रेडर्स संगठनों का मानना है कि टैक्स रेट घटाने और कंपोजीशन की लिमिट 75 लाख रुपए से 1.5 करोड़ रुपए करने से 34 हजार करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान होगा.

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