नए जमाने की यह कहावत श्रुति और स्मृति पर आधारित न हो कर ढेरों अनुभवों व उदाहरणों का निचोड़ है कि अगर रिश्तेदारी बिगाड़नी हो तो उधार ले लो या फिर उधार दे दो. अर्थशास्त्र के शुरुआती पाठों में ही पढ़ा दिया जाता है कि फाइनैंस का एक बड़ा स्रोत व्यक्तिगत भी होता है.

इन्हीं पाठों में बताया जाता है कि सहज उपलब्ध होने के साथ साथ इस तरह के फाइनैंस की एक खासियत यह भी है कि इस में ब्याज या अवधि का दबाव नहीं होता. पढ़ाया हालांकि यह भी जाता है कि दोस्ती यारी और रिश्तेदारी में लेनदेन अक्सर रिश्तों के लिए नुकसानदेह साबित होता है और उन के टूटने की वजह भी बनता है.

रिश्ते हमेशा से ही अर्थप्रधान रहे हैं. धर्म और संस्कृति की दुहाई दे कर बेवजह ही इस सच से मुंह मोड़ने की कोशिश भी हमेशा की जाती रही है. जबकि सच यह है कि समाज में रहना है तो आप आपस में उधारी के लेनदेन से बच नहीं सकते.

बिना शक अपनों की मदद का जज्बा एक अच्छी बात है जो न केवल मानव जीवन की बल्कि पैसे की भी सार्थकता सिद्ध करता है. भोपाल के 70 वर्षीय एक नामी डाक्टर की मानें तो साल 1968 में उन्हें मैडिकल में दाखिले के लिए उस वक्त महज 600 रुपए की जरूरत थी. तब यह रकम काफी भारी भरकम थी. डाक्टर साहब के पिताजी ने बेबसी से असमर्थता जाहिर कर दी तो उन की उम्मीद टूटने लगी और सपने दम तोड़ने लगे. पैसों के आगे प्रतिभा घुटने टेकती नजर आई.

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