कलियुग के दौर में पगपग पर धोखे हैं. खासतौर से पैसों के धोखे. तकरीबन सभी एकदूसरे को बेवकूफ बनाने में लगे हैं. ऐसा व्यक्तिगत तौर पर ही नहीं, संस्थागत तौर पर भी हो रहा है. गैरकानूनी ही नहीं, कानून सम्मत भी हो रहा है. यह आप पर है कि आप धोखों के शिकार होती हैं या धोखेबाज से होशियार रहती हैं.

यहां धोखा देने या बेवकूफ बनाने वाले व्यक्तियों की बात नहीं, बल्कि निवेश व फाइनेंस से जुड़ीं कंपनियों की बात की जा रही है. कम्पनियां लोगों को तरह तरह से लालच दे कर उन की जेब से पैसा खींच रही हैं.

देश में महंगाई चरम पर है. महंगाई की मार झेलते हुए भी पेरेंट्स अपने भविष्य या बुढ़ापे के समय किसी के सामने हाथ न फैलाने पड़ें, इस के लिए पर्सनल फाइनेंस की प्लानिंग करते हैं. ऐसा करना चाहिए भी. पेरेंट्स सालों से टैक्स प्लान या पेंशन प्लान के बारे में सुनते आ रहे हैं. लेकिन इधर काफी समय से चाइल्ड या चिल्ड्रेन नाम वाले इंश्योरंस और म्यूच्यूअल फण्ड प्रोडक्ट्स बाजार में हैं. कई लोगों को लगता है कि बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिहाज से इन में कुछ खास बात होती है, जो दूसरे प्रोडक्ट्स में नहीं होती.

हकीकत यह है कि ‘चाइल्ड प्लान’ या ‘चिल्ड्रेन प्लान’ सिर्फ मार्केटिंग टर्म है. यह कंपनियों की मार्केटिंग रणनीति है. बच्चों के भविष्य बनाने के नाम पर, दरअसल, पेरेंट्स भावुक हो जाते हैं और वे कम्पनियों की बेवकूफ बनाती रणनीति के शिकार हो जाते हैं. बच्चों के नाम पर बेचे जाने वाले फिनैन्शिअल प्रोडक्ट्स के प्रचार में लुभावना दी जाती है कि अगर आप अपने बच्चे से प्यार करते हैं तो हमारा प्रोडक्ट खरीदिए. कंपनियों की यह साधारण लेकिन चतुर ट्रिक है.

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