किरायेदार की ओर से अनुचित दावेदारी और लंबे कानूनी विवाद के डर से कई लोग प्रॉपर्टी किराये पर देने से परहेज करते हैं. लेकिन, बिना डरे भी किराये पर प्रॉपर्टी देने का एक तरीका है और वो है लीव ऐंड लाइसेंस अग्रीमेंट.

आइए जानते हैं, क्या है लाइसेंस अग्रीमेंट? इस अग्रीमेंट से लैंडलॉर्ड को क्या फायदा होता है.

किरायेदार को पूरा पजेशन नहीं

लीव ऐंड लाइसेंस अग्रीमेंट के तहत मकान मालिक के पास प्रॉपर्टी में प्रवेश कर इसका इस्तेमाल करने का अधिकार होता है और जिसे प्रॉपर्टी का लाइसेंस दिया गया हो, यानी किरायेदार इसका विरोध नहीं कर सकता. लेकिन, लीज अग्रीमेंट के तहत लैंडलॉर्ड तय अवधि के लिए अपनी प्रॉपर्टी को पूरी तरह इसे लीज पर लेने वाले के हाथों सौंप देता है.

ऐसे होता है अग्रीमेंट

अग्रीमेंट की परिभाषा से कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सके, इसके लिए जरूरी है कि आप लीव ऐंड लाइसेंस अग्रीमेंट ही करें, न कि लीज अग्रीमेंट. रेंट अग्रीमेंट में मकान मालिक और किराएदार को लाइसेंसर और लाइसेंसी के तौर पर पेश किया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि जिसने किराए पर प्रॉपर्टी ली, उसे उस पर सिर्फ उसका ही अधिकार नहीं है.

मकान मालिक के पास भी चाबी

एक्सपर्ट्स बताते हैं कि लीज या रेंट अग्रीमेंट से इतर लीव ऐंड लाइसेंस अग्रीमेंट में प्रॉपर्टी के अहाते का अधिकार किरायेदार के पक्ष में नहीं होता है. पजेशन दिखाने के लिए कॉन्ट्रैक्ट में अडिशनल लाइन जोड़ी जाती है कि मकान मालिक के पास भी घर की चाबियां रहेंगी.

मालिकाना हक

प्रॉपर्टी बेचे जाने की सूरत में लीज पर कोई असर नहीं पड़ता है जबकि लीव ऐंड लाइसेंस अग्रीमेंट के तहत किराए पर दी गई प्रॉपर्टी अगर बिक जाए तो पुराने मकान मालिक और किरायेदार के बीच का अग्रीमेंट स्वतः खत्म हो जाता है.

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