किसी रेटिंग एजेंसी को टिकाऊ बिजनेस ग्रोथ के लिए अच्छी लोन ग्रोथ की जरूरत होती है. लोन ग्रोथ तभी अधिक होती है, जब कंपनियां बिजनेस बढ़ाने के लिए कर्ज लेती हैं. इससे इन एजेंसियों तक लिए अधिक क्रेडिट रेटिंग के मौके बनते हैं. लोन ग्रोथ इस पर निर्भर करती है कि कंपनियां बिजनेस बढ़ाने के लिए निवेश कर रही हैं या नहीं. भारत में पिछले कुछ साल में कैपिटल एक्सपेंडिचर में उम्मीद के मुताबिक बढ़ोतरी नहीं हुई है. इस तरह के संकेत मिल रहे हैं कि कैपिटल एक्सपेंडिचर में धीरे-धीरे बढ़ोतरी होगी. इससे शॉर्ट टर्म में लोन ग्रोथ अच्छी रहने की उम्मीद नहीं है. हालांकि, एनालिस्टों का मानना है कि रेटिंग एजेंसियों का मीडियम टर्म में परफॉर्मेंस बढ़िया रहेगा.

हाल में क्रिसिल के केयर रेटिंग्स में हिस्सेदारी खरीदने के बाद कंपनी को लेकर 'बिडिंग वॉर' शुरू हो गई. अमेरिकी रेटिंग एजेंसी फिच भी केयर रेटिंग्स में हिस्सेदारी खरीदने की ताक में लगी हुई है. इस वजह से रेटिंग एजेंसियों में शेयर बाजार की दिलचस्पी बढ़ी है. क्या इन कंपनियों में निवेश करना चाहिए?

जीएसटी के लागू होने के बाद संगठित क्षेत्र की कंपनियों की संख्या बढ़ने की उम्मीद है. इससे डेट इंस्ट्रूमेंट्स के जरिये फंड जुटाने वाली कंपनियों की संख्या बढ़ेगी. उधर, बैंकरप्सी कोड को अगर सही ढंग से लागू किया जाता है तो इससे बैंकों का भरोसा बढ़ेगा. इससे भी डेट इंस्टूमेंट्स से फंड जुटाने के मामले बढ़ेंगे. इसके अलावा, आरबीआई ने कमर्शियल पेपर पर ड्राफ्ट रेगुलेशन में कहा है कि शॉर्ट टर्म बॉन्ड के लिए दो रेटिंग एजेंसियों से रेटिंग कराना इंडस्ट्री के लिए अच्छा रहेगा. इस बारे में आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज की रिसर्च एनालिस्ट काजल गांधी ने बताया, 'ब्याज दरों में गिरावट आ रही है और एनपीए साइकिल पीक कर गया है. इसके साथ कंपनियों की तरफ से अधिक बॉन्ड इश्यू किए जा रहे हैं. ये सभी बातें रेटिंग एजेंसियों के हक में हैं.'

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