कुछ माह पहले मेरे मित्र ने कहा कि उस का बेटा होटल मैनेजमैंट का कोर्स करना चाहता है पर वह उसे इस की इजाजत नहीं दे रहा, क्योंकि वह बेटे को किसी भी सूरत में मीट और अंडों के साथ काम नहीं करने देना चाहता था. मुझे तब चंद्रशेखर भूनिया का मामला याद आया. वे एक चार्टर्ड अकाउंटैंट हैं और उन्हें लगा कि शाकाहारियों के लिए होटल मैनेजमैंट का कोर्स करना असंभव है, क्योंकि उन्हें पशुओं को काटना और पकाना सीखना ही होता है. उन्होंने मंत्रियों, अफसरों और अपने समाज के लोगों को पत्र लिखने शुरू किए कि यह अनिवार्यता गलत है. उन्होंने दिल्ली आ कर इस की पैरवी शुरू की.

उन का कहना था कि कुछ वर्गों में केवल शाकाहारी खाना ही खाया जाता है और उस वर्ग के छात्र होटल मैनेजमैंट के कोर्स में मीट पकाना सीख कर क्या करेंगे जबकि उन्हें पूरे जीवन शाकाहारी खाना ही बनाना है. यह उन की मार्केट मांग, परिवार की इच्छा, पारिवारिक मूल्यों के खिलाफ है. मैं ने खुद स्कूल में बायोलौजी नहीं ली थी, क्योंकि उस में पशुओं को काटना पड़ता था.

एक ढर्रे पर चलना

होटल मैनेजमैंट कोर्स में 40 से ज्यादा विषय होते हैं, जिन में कानून, फ्रंट औफिस की देखरेख, टिकटिंग, रहने की सुविधा, कमरों की बुकिंग, मांसाहारी खाना बनाना सीखने की अनिवार्यता कर के अन्य क्षेत्रों की जानकारी से वंचित करना गलत है.

इस क्षेत्र के ढर्रे पर चल कर हम अपनी शाकाहारी पाककला को विश्व भर में फैलाने से भी रोक रहे हैं. चूंकि होटल मैनेजमैंट कोर्स में जाने वाले सारे मांसाहारी ही होते हैं, इसलिए उन्हें शाकाहारी के नियमों का और संवेदनशीलताओं का खयाल नहीं रहता. वे शाकाहारी खाने में मांसाहारी चीजें खासतौर पर अंडे इस्तेमाल करने में हिचकते नहीं हैं. वे ऐनिमल फैट्स में शाकाहारी खाने को तलने में भी कोई परहेज नहीं करते.

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