कुल्फी का नाम सुनते ही तुरंत लखनऊ की प्रकाश कुल्फी की याद आ जाती है. लखनऊ के सब से घने बसे अमीनाबाद में प्रकाश कुल्फी की मशहूर दुकान है. दुकान के बाहर ही मिट्टी के मटके में कुल्फी जमाई जाती थी. मिट्टी के मटके को ठंडा रखने के लिए पहले उसे बोरे से ढका जाता था, जो देखने में अच्छा नहीं लगता था. अत: मटके को लाल रंग के कपड़े से ढका जाने लगा. इसे मटका कुल्फी के नाम से भी जाना जाता था. जब ग्राहक आता था तो मटके से लोहे का डब्बा निकाल कर कुल्फी प्लेट में डाल कर फालूदा के साथ खानेको दी जाती थी. उस समय कुल्फी का एक ही स्वाद यानी रबड़ी वाला स्वाद ही मिलता था. लोग दूरदूर से प्रकाश कुल्फी खाने लखनऊ आते थे. फिर समय बदला तो स्वाद के साथसाथ हाइजीन का महत्त्व भी बढ़ने लगा. तब कुल्फी नए अंदाज में बनने और बिकने लगी. लखनऊ में फिर कुल्फी के साथ फ्रैश फ्रूट का स्वाद मिलने लगा. ग्राहकों को अब ऐसी कुल्फी पसंद आने लगी है.

देखने में फल खाने में कुल्फी

लखनऊ की मशहूर छप्पनभोग मिठाई शौप में आम और संतरा जैसे फलों के अंदर कुल्फी तैयार की जाने लगी है. इस के लिए बहुत सावधानी से अधपके आम को ऊपर से काट कर अंदर से गुठली निकाल दी जाती है. गुठली निकल जाने के बाद बची जगह में कुल्फी भर दी जाती है. इस के बाद आम को बंद कर अरारोट के आटे से पैक कर फ्रीजर में रखा जाता है. कुल्फी जम जाने के बाद इसे खाने को दिया जाता है. इसे खाते समय फ्रैश फ्रूट का एहसास होता है. छप्पनभोग के मालिक रवींद्र गुप्ता कहते हैं कि फ्रूट के अंदर भरी कुल्फी को खाने पर अलग स्वाद मिलता है. इस के जरीए मौसम के बाद भी फलों का स्वाद लिया जा सकता है. संतरा कुल्फी बनाने के लिए संतरे को ऊपर से काट कर और उस के अंदरकी फांकों को निकाल उन्हें छील कर बीज निकाल दिए जाते हैं. फिर कुल्फी में संतरे के पल्प को मिला कर संतरे के फल में भर दिया जाता है. इसे भी अरारोट के आटे से बंद कर जमने के लिए रखा जाता है और जमने के बाद खाने को दिया जाता है.

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