विश्व में करीब 30 करोड़ लोग दमा या अस्थमा की समस्या से ग्रसित हैं. अस्थमा की बीमारी व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामुदायिक तीनों स्तरों पर लोगों को प्रभावित करती है. चौंकाने वाली बात तो यह है कि बच्चे भी इस बीमारी का तेजी से शिकार होे रहे हैं.

नियंत्रण मुमकिन

कुछ बातों पर विशेष ध्यान दिया जाए, तो निस्संदेह नियंत्रण संभव है. गोल्ड गाइडलाइन के सर्वे के अनुसार, इस बारे में मुंबई के लीलावती अस्पताल के रेस्पिरेटरी विभाग के प्रमुख डा. जलील डी. पारकर का कहना है कि अस्थमा बढ़ने की 3 वजहें प्रमुख हैं-

प्रदूषण

स्ट्रैस फैक्टर

जीवनशैली

दूषण भी कई तरह के हैं, जिस में गाडि़यों से निकला धुआं, उद्योगधंधे से निकला प्रदूषण, साफसफाई की कमी आदि प्रमुख हैं. बड़े शहरों में गांव की तुलना में अस्थमा के मरीज अधिक हैं. दूसरा सब से महत्त्वपूर्ण कारण है तनाव, जो आजकल व्यक्तियों में अधिक है. चाहे वयस्क हो या बच्चा, हर कोई इस दौर से गुजर रहा है. वयस्कों में काम का तनाव अधिक है, जबकि बच्चों में कामयाबी, शिक्षा आदि का दबाव अधिक है. आज का युवा स्कूल से ले कर घर, कंप्यूटर और एसी कमरे तक ही अपनेआप को सीमित कर लेता है.

मुख्य वजह

आज की जीवनशैली बहुत बदल चुकी है. खानेपीने की आदत बिगड़ चुकी है. लोग हैल्दी फूड से अधिक जंकफूड पर निर्भर करने लगे हैं. हालांकि अस्थमा की दवाएं उपलब्ध हैं, पर इस के साइडइफैक्ट भी बढ़ने लगे हैं. पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में यह बीमारी अधिक पाई जाती है. इस की मुख्य वजह बताते हुए डा. पारकर कहते हैं कि महिलाओं में हारमोनल बदलाव और शारीरिक संरचना ऐसी होती है कि वे जल्द ही इस की गिरफ्त में आ जाती हैं. दरअसल, उन की श्वास नलिकाएं पुरुषों की अपेक्षा पतली होती हैं, जो किसी भी प्रकार की एलर्जी से जल्द संकुचित हो जाती हैं.

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