आंखें प्रकृति की एक अनुपम देन और शरीर का एक महत्त्वपूर्ण भाग हैं. ये शरीर की 2 खिड़कियां हैं या यों कहिए कि शरीर में फिट कैमरे की तरह हैं, जो सामने घट रही घटनाओं को जस का तस प्रस्तुत करती हैं. पर कभी आप ने सोचा है कि यदि एक आंख कमजोर हो या उस से कम दिखे और उस की सही देखभाल न की जाए तो नजरदोष बढ़ जाता है. यहां तक कि देखने के तरीके में भी अंतर आ जाता है. अच्छाखासा इंसान नजरदोष के कारण भैंगेपन से भी ग्रस्त हो सकता है. सवाल यह उठता है कि यदि एक आंख कमजोर है तथा दूसरी सामान्य तो उस के क्या कारण होते हैं? बच्चों में इस दोष को कैसे पहचानें तथा इस का उपचार क्या है? यह सब बता रहे हैं चौधरी आई सैंटर ऐंड लेजर विजन से जुड़े मैडिकल सुपरिंटेंडैंट और नेत्र विशेषज्ञ डा. (ब्रिगेडियर) एच.सी. जौहरी.

डा. जौहरी कहते हैं कि जिस तरह पूरी बौडी का डैवलपमैंट होता है उसी तरह आंख की आई बौल का भी पूर्ण तरीके से विकास 18 साल की उम्र तक होता है. आई बौल का साइज भी प्रत्येक व्यक्ति के लंबेचौड़े, मोटे होने की तरह अलगअलग होता है. पर आई बौल का साइज सामान्य से ज्यादा हो तो जो लैंस इमेज फोकस होती है वह थोड़ी आगे हो जाती है और ऐसा व्यक्ति शौर्ट साइटेड हो जाता है. इस को मायोपिया कहते हैं. पर इसी आई बौल का साइज सामान्य से छोटा रह जाए तो इमेज पीछे फोकस होती है. ऐसे में व्यक्ति दूर की चीजें तो देख सकता है पर पास की चीजों के लिए चश्मा लगाना पड़ता है.

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