प्रैग्नेंसी महिलाओं के लिए नाजुक समय होता है. इस दौरान उन के शरीर में गर्भस्थ शिशु के विकास के कारण अनेकानेक परिवर्तन होते हैं. हलकीफुलकी असुविधा, दिक्कतें, लक्षण होना तो इस समय सामान्य माना जाता है. प्रैग्नेंसी में महिलाएं स्वस्थ रहें, प्रसव सकुशल हो तथा हृष्टपुष्ट शिशु का जन्म हो, इस के लिए विशेष देखभाल और सावधानी की जरूरत होती है. गर्भवती महिलाओं को अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना पड़ता है. उन्हें नियमित रूप से डाक्टरी जांच करानी चाहिए ताकि प्रैग्नेंसी में होने वाली समस्याओं और रोगों का प्रारंभिक अवस्था में ही पता लगाया जा सके और उन के दुष्परिणामों से बचाव के उपाय किए जा सकें.

प्रैग्नेंसी में महिलाओं को अनेक तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. इन में से हाई ब्लडप्रैशर प्रमुख है. जब प्रैग्नेंसी में सिस्टोलिक रक्तचाप 140 मि.मी. और डायस्टोलिक रक्तचाप 90 मि.मी. से ज्यादा होता है तो यह दशा हाई ब्लडप्रैशर कहलाती है. जब तक डायस्टोलिक रक्तचाप 100 मि.मी. तक रहता है, हलका हाई ब्लडप्रैशर और जब यह 110 मि.मी. से ज्यादा हो जाता है तो गंभीर हाई ब्लडप्रैशर कहलाता है.

जब महिलाओं का प्रैग्नेंसी में रक्तचाप बढ़ जाता है और प्रसव में कुछ समय बाद रक्तचाप सामान्य हो जाता है तो प्रैग्नेंसीजनित हाई ब्लडप्रैशर या प्रेगनेंसी इंड्यूस हाइपरटेंशन (पी.आई.एच.) कहलाता है.

यदि हाई ब्लडप्रैशर के साथ पैरों, हाथों में सूजन, पेशाब में प्रोटीन आती है, तो यह दशा प्री एक्लैम्पसिया कहलाती है. यदि इस दशा पर नियंत्रण नहीं रखा जाए तो इस से अनेक समस्याएं हो सकती हैं. झटके आने लगते हैं, जिसे एक्लैम्पसिया या टौक्सीमिया औफ प्रेगनेंसी कहते हैं.

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