देश के कुछ बुद्धिजीवी और कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं इस बहस को तूल देने की कोशिश में हैं कि आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) पद्धति से संतान पैदा करने वाले डाक्टरों और क्लिनिकों के लिए कानून बनाया जाए, क्योंकि कुछ दिन पहले मुंबई के एक डाक्टर दंपती अनिरुद्ध और अंजलि मालपानी का पंजीयन महाराष्ट्र मैडिकल काउंसिल औफ इंडिया ने 3 महीने के लिए रद्द कर दिया था. वजह विज्ञापन का मसौदा था, जिस में इन पतिपत्नी ने शर्तिया संतान पैदा होने का दावा किया था.

मगर यह बहस आकार नहीं ले पाई. इस की एकलौती वजह यह थी कि आईवीएफ पद्धति आखिरकार एक वैज्ञानिक और पारदर्शी पद्धति है. लिहाजा, आम लोगों ने इन आरोपों का समर्थन तो दूर की बात है इन से इत्तफाक भी नहीं रखा. इन्होंने इस में दिलचस्पी नहीं ली कि आईवीएफ सैंटर्स संचालित करने वाले लोगों को लूट रहे हैं.

लेकिन संतानप्राप्ति के नाम पर जिन लोगों ने अवैज्ञानिक तरीकों से बड़े पैमाने पर लूटपाट मचा रखी है उन के खिलाफ न तो कोई बोलने को तैयार होता है और न ही कानून बनाने की मांग की जाती है कि ये लोग किस आधार पर टोनोंटोटकों, पूजापाठ, यज्ञ, हवन और तंत्रमंत्र के जरीए औलाद हो जाने का दावा करते हैं.

इन लोगों के पास न क्लिनिक हैं, न उपकरण, न दवाइयां और न ही कोई पद्धति. है तो बस एक झूठा आश्वासन, अपना और धर्मग्रंथों का बेहूदा मसौदा, जिस के चलते बेऔलाद दंपती पूजापाठ, जपतप और यज्ञहवन में लगे रह कर ठगते रहते हैं और मुराद पूरी न होने पर कहीं शिकायत या काररवाई भी नहीं कर सकते, क्योंकि यह आस्था का विषय है विज्ञान का नहीं.

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