हम भारतीयों की मान्यता है कि जीवन के 4 उद्देश्य होते हैं.- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष. इन चारों में काम को यानी सैक्स को वही महत्त्व प्राप्त है, जो धर्म, अर्थ और मोक्ष को है. हमारे प्राचीन साहित्य में सैक्स को ले कर खुल कर चर्चा हुई है और महर्षि वात्स्यायन ने सैक्स को ले कर कामसूत्र जैसे गं्रथ की रचना की है. यह विडंबना की बात है कि हमारे यहां आज भी सैक्स पर खुल कर बात करना वर्जित माना जाता है और सैक्स को एक टैबू माना जाता है. घरेलू महिला सुनीता एवं मैरिज काउंसलर दीप्ति के अनुसार, ‘‘सैक्स जरूरी है, जीवन का अभिन्न अंग है, यह आनंद देता ही है. आनंद देने के साथसाथ सैक्स सृष्टि के चलते रहने के लिए संतान की उत्पत्ति का एकमात्र साधन भी है.’’

यौन रोग विशेषज्ञ प्रकाश कोठारी के अनुसार सैक्स शारीरिक प्रक्रियाओं और हारमोंस के संचालन को नियमित रखता है. इस से शरीर के इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरोधात्मक क्षमता को बढ़ावा मिलता है. सप्ताह में 2 बार सैक्स करने वालों की अपेक्षा जो कभीकभी सैक्स कर पाते हैं उन में इम्यूग्लोबिन ‘ए’ का स्तर कम पाया जाता है और रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता काफी कम होती है. ऐसे लोग अकसर बीमार रहते हैं. इसलिए विवाहितों की अपेक्षा अविवाहितों की मृत्युदर अधिक पाई गई है.

सैक्स से प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि

कैंसर रोग के खतरे से बचाव होता है, क्योंकि पिछले 35 सालों में जो व्यक्ति जितना अधिक स्खलित होता है उस की अपेक्षा कम स्खलित होने वाले पुरुषों की तुलना में 33% कम प्रोस्टेट कैंसर पाया गया, जबकि पुरुषों में उम्र बढ़ने के साथ प्रोस्टेट कैंसर होने का खतरा अधिक रहता है.

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