दुनिया भर में यूरीन इनकंटीनेस के मरीज लगातार बढ़ रहे हैं, जो कि गंभीर संकेत हैं. ये बीमारी मुख्‍य रूप से मोटापे के कारण आती है, इसका आसान सा इलाज भी उपलब्‍ध है, लेकिन शर्म के कारण लोग डॉक्‍टर के पास नहीं जाते. खास बात यह है कि ये बीमारी महिलाओं में ज्‍यादा होती है. ये ऐसी बीमारी है, जिसमें मरीज खांसते,छींकते भी मूत्र का निस्‍तारण कर देते हैं. यानी मूत्र पर नियंत्रण खोने लगता है.

भारत की अग्रणी यूरोलॉजी तथा लेप्रोस्कोपी हॉस्पीटल चेन आरजी स्टोन यूरोलॉजी एंड लेप्रोस्कोपी हॉस्पीटल, राजौरी गार्डन के चीफ यूरोलॉजिस्ट डॉ. पंकज वाधवा ने स्ट्रेस यूरीनरी इनकंटीनेस जो कि महिलाओं में आमतौर पर पाई जाने बीमारी है, के कारणों तथा उसके लिए उपलब्ध उपचारों पर प्रकाश डाला.

आरजी स्टोन यूरोलॉजी एंड लेप्रोस्कोपी हॉस्पीटल के चीफ यूरोलॉजिस्ट डॉ. पंकज वाधवा ने स्पष्ट किया कि स्ट्रेस यूरीनरी इनकंटीनेस की समस्या महिलाओं में आमतौर पर देखी जाती है. प्रौढ़ावस्था में लगभग 30 से 40 फीसदी महिलाओं में यह समस्या महसूस की जाती है. यही नहीं यह असंयम उम्र के साथ-साथ बढ़ता जाता है. इस रोग में रोगी शारीरिक गतिविधि करते हुए या फिर खांसते या छींकते हुए मूत्र का रिसाव कर देता है.

उन्होंने बताया कि काफी बड़ी संख्या में महिलाएं डॉक्टर से इस समस्या पर बात करने से झिझकती हैं और ताउम्र इस समस्या को झेलती रहती हैं. कई बार उन्हें समाज से तिरस्कार और बहिष्कार जैसी यंत्रणा भी झेलनी पड़ती है क्योंकि सीढिय़ां चढ़ने, वजन उठाने इत्यादि रोजमर्रा के कामों के दौरान उनका मूत्र रिसने लगता है और उन्हें काफी शर्मिंदगी भी उठानी पड़ती है.

बहरहाल जीनवशैली में साधारण बदलावों, चंद दवाओं और यदि जरूरत पड़े तो एक साधारण सर्जरी से इस समस्या को महिलाओं में दूर किया जा सकता है. स्ट्रेस यूरीनरी इनकंटीनेस की समस्या से ग्रसित एक 35 वर्षीय महिला आशा (बदला हुआ नाम) हमारे केंद्र में आई. उसे इस समस्या को झेलते हुए 4 से 5 वर्ष हो चुके थे. वह दो बच्चों की मां थी और दूसरे बच्चे के जन्म के बाद से ही उसे यह समस्या झेलनी पड़ रही थी. उसे पेरिनियल एक्सरसाइज सिखाई गईं और उसे दवाएं दी गईं. उसे इस तरीके से सिर्फ आंशिक राहत मिली लेकिन हल्का-फुल्का रिसाव फिर भी जारी रहा.

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