‘नाम मानसी मल्होत्रा, उम्र 30 वर्ष, विवाहित, शिक्षा बी.ए., एम.ए. घरेलू कार्यों में सुघड़. पति का गारमेंट्स का अच्छा व्यापार, छोटा परिवार, 2 बच्चे, 8 वर्षीय बेटी, 5 वर्षीय बेटा. दिल्ली के पौश इलाके में अपना घर, घर में नौकरचाकर, गाड़ी, सुखसुविधाओं की कोई कमी नहीं.’ फिर भी मानसी परेशान रहती है. आप हैरान हो गए न, अरे भई, सुखी जीवन के लिए और क्या चाहिए, इतना सब कुछ होते हुए भी कोई कैसे परेशान रह सकता है? लेकिन मानसी खुश नहीं है. घरपरिवार, प्यार करने वाला पति, बच्चे, आर्थिक संपन्नता सब कुछ होते हुए भी मानसी तनावग्रस्त रहती है. उसे लगता है कि उस की पढ़ाईलिखाई सब व्यर्थ हो गई. उस का सदुपयोग नहीं हो रहा है. वह बच्चों को तैयार कर के, लंच पैक कर के स्कूल भेजने, नौकरों पर हुक्म चलाने, शौपिंग करने, फोन पर गप्पें लड़ाने के अलावा और कुछ नहीं करती.

क्या ये सब करने के लिए उस के मातापिता ने उसे उच्च शिक्षा दिलाई थी? सब उसे एक हाउस वाइफ का दर्जा देते हैं. पति की कमाई पर ऐश करना मानसी को खुशी नहीं देता. वह चाहती है कि अपने दम पर कुछ करे, पति के काम में सहयोगी बने, अपनी शिक्षा का सदुपयोग करे  क्या घर से बाहर जा कर नौकरी करना ही शिक्षा का सदुपयोग है? क्या यही नारीमुक्ति व नारी की आत्मनिर्भरता को दर्शाता है, नहीं यह केवल स्वैच्छिक सुख है, जिस के जरिए महिलाएं आर्थिक आत्मनिर्भरता का दम भरती हैं और घर में महायुद्ध मचता है. क्या किसी महिला के नौकरी भर कर लेने से उसे सुकून और शांति मिल सकती है? इस का जवाब आप सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक बसों में धक्के खा कर, भागतेभागते घर की जिम्मेदारियों को निबटा कर नौकरी करने वाली महिलाओं से पूछिए.

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