आप जब अस्पताल से अपने नन्हेमुन्ने को घर ले कर आती हैं, तो मन में उस की परवरिश को ले कर ढेरों सवाल होते हैं. कैसे मैं इसे बड़ा करूंगी? कब यह बोलना सीखेगा? कब चलेगा? कब यह मेरी बातों को समझेगा? सच कहें तो बच्चे को बड़ा करना अपनेआप में बहुत बड़ी जिम्मेदारी का काम होता है. उस के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए प्यारदुलार बेहद जरूरी होता है. जब भी आप अपने बच्चे का कोई काम करें तो उसे इसलिए न करें कि यह आप की ड्यूटी है वरन इसलिए करें कि आप अपने बच्चे से प्यार करती हैं. आप की यही भावना आप को अपने बच्चे को सही तरीके से बड़ा करने में मददगार साबित होगी. औफिस में कार्यरत रजनी अरोड़ा का कहना है, ‘‘मैं जब औफिस से घर आती हूं तो अपने बच्चों को देख कर दिन भर की सारी थकान भूल जाती हूं. अपनी 3 साल की बेटी में तो मैं हर दिन कुछ न कुछ नया देखती हूं. उस का प्यार जताने का तरीका, अपनी बात कहने का तरीका सब कुछ अलग सा लगता है.’’

इस संबंध में बाल मनोवैज्ञानिक डा. विनीत झा का कहना है कि बच्चे 4 साल की उम्र तक अपने जीवन का 80 प्रतिशत तक सीख लेते हैं बाकी का 20 प्रतिशत वे अपने पूरे जीवनकाल में सीखते हैं. अगर यह कहा जाए कि बच्चे नन्हे साइंटिस्ट की तरह होते हैं, तो गलत न होगा. उन की आंखों में देखें तो उन में मासूमियत के साथसाथ कुछ नया सीखने और जानने की जिज्ञासा भी भरी होती है. 1 साल से कम उम्र का बच्चा हर चीज को अपने मुंह में डालता है. इस का कारण यह है कि उस समय उस के टेस्ट और्गन विकसित होते हैं.

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