11 बज रहे थे. आरोही की सीए फाइनल की परीक्षा का समय दोपहर 2 बजे था. वह घर में घूमती हुई आखिरी वक्त की तैयारी पर नजर डाल रही थी. हाथ में बुक थी. उस की मां रीना किचन में व्यस्त थीं. डोरबैल बजी तो रीना ने ही दरवाजा खोला.

नीचे के फ्लोर पर रहने वाली अलका थी. अंदर आते हुए बोली, ‘‘इंटरकौम नहीं चल रहा है रीना. जरा देखना केबिल आ रहा है?’’

‘‘देख कर बताती हूं,’’ कह रीना ने टीवी औन किया. केबिल गायब था. बताया, ‘‘नहीं, अलका.’’

‘‘उफ, मेरे सीरियल का टाइम हो रहा है.’’

आरोही की नजरें अपनी बुक पर गड़ी थीं, पर उस ने अलका को गुडमौर्निंग आंटी कहा तो अलका ने पूछा, ‘‘परीक्षा चल रही है न? आज भी पेपर है?’’

‘‘जी, आंटी.’’

‘‘आरोही, सुना है सीए फाइनल पहली बार में पास करना बहुत मुश्किल है. 3-4 प्रयास करने ही पड़ते हैं. मेरा कजिन तो 6 बार में भी नहीं कर पाया. वह भी पढ़ाई में होशियार तो तुम्हारी ही तरह था.’’

‘‘देखते हैं, आंटी,’’ कहतेकहते आरोही का चेहरा बुझ सा गया.

अलका ने फिर कहा, ‘‘इस के बाद क्या करोगी?’’

‘एमबीए.’’

‘‘और शादी?’’

‘‘सोचा नहीं, आंटी’’ कहते हुए आरोही के चेहरे पर झुंझलाहट के भाव देख रीना ने बात संभाली, ‘‘अलका, किचन में ही आ जाओ. मैं इस के लिए खाना तैयार कर रही हूं.’’

अलका किचन में ही खड़ी हो कर आधा घंटा आरोही की शादी के बारे में पूछती रही. रीना के चायकौफी पूछने पर बोली, ‘‘नहीं फिर कभी. अभी जल्दी में हूं.’’ कह चली गई.

उस के जाने के बाद आरोही ने बस इतना ही कहा, ‘‘मम्मी, आप ऐसी आंटी कभी न बनना, जिन्हें यह भी न पता हो कि कब क्या बात करनी चाहिए.’’

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