युवाओं के लिए अच्छे दिन आ गए हैं. नोटबंदी को गले से उतारने के लिए सरकार कार्ड पेमैंट पर बहुत से छोटेछोटे चार्ज समाप्त कर रही है और ज्यादा लोग अब कार्ड से भुगतान लेने लगे हैं. यह भले एक तरह से अच्छा लगे पर जो अनुशासन सदियों से चल रहे कागज के नोटों का है, वह टूट जाएगा. कार्ड की संस्कृति ऊपरी तौर पर चाहे जितनी अच्छी लगे असल में यह मानसिक तौर पर गुलामी ही है.

कागज का नकद नोट हर युवा के लिए स्वतंत्रता है कि वह पैसा अपनी गर्लफै्र्रंड के लिए सिनेमा के टिकट के लिए खर्च कर रहा है, बिना मातापिता को बताए मुंबई का चक्कर लगा कर आ रहा है, आर्थर हेली की नई किताब खरीदने पर खर्च कर रहा है या किसी कोचिंग वाले सर से क्लास ले रहा है. उसे अपना ड्रीम नहीं छोड़ना पड़ रहा है. पूर्व कांग्रेस सरकार भी कुछ कम नहीं थी पर वर्तमान सरकार अति कर रही है, चाहती है कि हर काम कार्ड पेमैंट से हो, ताकि पता चल सके कि कब क्या किया गया.

इस कार्ड संस्कृति का नतीजा होगा कि हर युवा का जीवन एक खुली किताब हो जाएगा और जो चाहेगा वह पता लगा लेगा कि उस ने कब, कहां, क्या खर्च किया. आप के जीवन की प्राइवेसी बिलकुल समाप्त हो जाएगी. प्राइवेसी एक मौलिक हक है और उसे बचा कर रखा जाना चाहिए पर देशभक्ति, आतंकवाद और कालेधन के चक्कर में इसे कार्ड पेमैंट के शगूफे के जरिए सरकार बुरी तरह निगल रही है.

नोटबंदी अपनेआप में सरकार का अपने ही नागरिकों पर आतंकी प्रहार है. करोड़ों युवाओं के किताबों में छिपा कर रखे गए 500 व 1000 के नोट निकाल लिए गए हैं और बहुतों ने तो अनापशनाप तरीके से उन्हें खर्च भी किया है. कुछ गृहिणियां तो 1000-500 के नोट महीनों बाद निकालेंगी और तब तक वे बेकार हो गए होंगे. ऊपर से सरकार ने प्राइवेसी पर काबू करने का चौकस इंतजाम कर लिया है.

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