जम्मू के कठुआ, उत्तर प्रदेश के उन्नाव, बिहार के सासाराम, गुजरात के सूरत में हुए कुछ बलात्कारों ने देश को दहला दिया है. ज्यादा बड़ी बात इन मामलों में यह रही कि बलात्कारियों को पकड़ने में पुलिस ने आनाकानी की. जब तक दबाव न पड़ा मामला लटका रहा, क्योंकि हर मामले में अभियुक्त सत्ताधारी पार्टी से जुड़ा था. जहां सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह कमजोरों को बचाएगी, इन सभी मामलों में यह साफ हुआ कि सत्ता के निकट हों तो आप का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता और किसी औरत, लड़की या बच्ची की जिंदगी सुरक्षित नहीं है. मांएं अकसर लड़कियों की स्वच्छंदता पर रोना रोती हैं कि फैशन और आधुनिकता के चलते बलात्कार हो रहे हैं पर इन सब मामलों में कोई भी लड़की फैशनेबल नहीं थी. इन सब मामलों में बलात्कार का कारण अपना रोब जमाना था और दुनिया को यह बताना था कि पार्टी और सरकार उन के साथ हैं. वे जो चाहें कर सकते हैं.

सब से बड़ी बात यह रही कि स्मृति ईरानी, सुषमा स्वराज, मीनाक्षी लेखी, निर्मला सीतारमन, उमा भारती जैसी औरतों, जो पहले हर बलात्कार पर आसमान सिर पर उठा लेती थीं, इन मामलों में चुप ही रहीं यानी बलात्कार का रंग सत्ता के साथ बदल जाता है और बलात्कार तब छोटी सी बात होती है जब आप सत्ता में हों. जघन्य पाप है अगर आप सत्ता में न हों. औरतों का यह दोगलापन ही उन के प्रति गुनाहों के लिए जिम्मेदार है. हर बेटी की मां रोना रोती है कि उस की बेटी को सास यातना देती है पर वही औरत अपने बेटे की पत्नी को कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ती. हर औरत दूसरी लड़की पर होने वाले दुख के प्रति एक परपीड़न सुख महसूस करती है. हिंदी फिल्मों में ललिता पवार टाइप की सासों की भरमार रही है और इन को फिल्माया ही इसलिए जाता रहा है, क्योंकि ये घरघर की कहानी रही हैं और फिल्म निर्माता औरतों को इन्हीं के जरीए आकर्षित करते रहे हैं.

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