अम्मां...अम्मां.’ न न ये आवाजें न तो बच्चों की हैं, न बहुओं की जिन्हें हर समय अम्मांजी का गुणगान करना होता है. ये आवाजें हैं हमारे माननीय सांसदों की, जो तमिलनाडु से जे जयललिता के वरदान के कारण लोकसभा चुनावों में कांगे्रस, भाजपा और द्रविड़ मुनेत्र कषगम को हरा कर गोल्ड बिल्डिंग में पहुंचे थे. जब ये बोलते हैं तो कितने ही दूसरे सांसद उंगलियों पर गिनने लगते हैं कि कितनी बार ‘अम्मां’ का उच्चारण किया गया. इन दूसरे सांसदों को तमिल चाहे न आए ‘अम्मां...अम्मां’ जरूर सुनाई देता है.

यह जयललिता का कमाल है कि उस ने अकेले अपने बलबूते पर तमिलनाडु को अपने पैरों के अंगूठे के नीचे दबा रखा है. वहां जयललिता के विधायक व सांसद उसे तमिल ताई, पुरच्छि थलईवी, क्रांतिकारी नेता, सौम्य मुख्यमंत्री जैसे नामों से पुकारते थकते नहीं हैं और यदि उस की आंख का इशारा हो तो सभी सांसद, विधायक उस तरह जमीन पर लेट कर नमस्कार करने लगते हैं जैसे रामदेव करा लेते हैं. जयललिता का जादू क्यों है, यह अजब पहेली है. जयललिता के पास न तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा संगठन है, न कांगे्रस जैसा इतिहास फिर भी वह सभी जातियों के लोगों की पहली पसंद बनी हुई है. जबकि उस के राज में तमिलनाडु ने न तो कोई खास उन्नति की और न ही उस ने लंबेचौड़े काम कराए.

तमिलनाडु व्यक्तिपूजा के लिए जाना जाता है. पर इस तरह की महिला जिस के पास न पेरियर जैसी सोच हो, न एम जी रामचंद्रन जैसे फिल्मी हीरो की छवि, बारबार जीत जाना और हारने के बाद फिर उछल कर गद्दी पा लेना एक पहेली की तरह ही है. हां, इतना जरूर कहना होगा कि हमारे आम नेताओं की तरह उस ने भी कभी हार नहीं मानी और अकेले ही जूझती रही. उस का आत्मविश्वास और निडरता ही शायद उस की विशेषता है, जो उसे जयललिता से अम्मां देवी बना रहा है.

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