राजनीति भी धंधा ही है और जो लोग गांधी परिवार की आज भी सत्ता पर पकड़ से चिढ़ कर परिवारवाद को राजनीति का काला धब्बा मानते हैं, गलत ही हैं. जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद लगा था कि नेहरू परिवार नाम की चीज न रहेगी पर फिर इंदिरा गांधी आ गईं. 1977 में हारने के बाद लगा कि अब परिवार समाप्त हो गया पर 1981 में फिर आ गईं.

पहले संजय गांधी और फिर इंदिरा गांधी की असामयिक मौत के बाद लगा कि परिवार का राज गया पर फिर राजीव गांधी आ गए. 1989 में हारने के बाद लगा कि लो अब तो अंत हो गया पर 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद नरसिंह राव की जो सरकार बनी वह गांधी परिवार की ही थी.

1998 में सोनिया गांधी राजनीति में आ गईं पर लगा कि वे केवल मुखौटा रहेंगी पर 2004 में जीत गईं और अब 2014 में हारने के बाद भी वे जमी हुई हैं और शायद प्रियंका गांधी भी राहुल गांधी के साथ मिल कर परिवारवाद का कलश चमकाए रखें.

यह यहीं नहीं हो रहा. अमेरिका में बिल क्लिंटन की 8 साल की प्रैजीडैंसी का लाभ उठा कर हिलेरी क्लिंटन राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हैं. दूसरी ओर सिरफिरे दिखने वाले डोनाल्ड ट्रंप के चारों ओर 2 बेटे, 1 बेटी और पत्नी चुनाव का भार संभाले हुए हैं. 8-10 साल बाद मिशेल ओबामा राजनीति में कूद पड़ें तो आश्चर्य न होगा. वहां कैनेडी परिवार तो जानामाना परिवारवादी था पर अब चूंकि एकएक कर के बहुत से मौत के शिकार हो गए, अब यह नाम भुला दिया गया है.

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