जब कोई नया फैशन चल पड़ता है तो पुराना फैशन आउटडेटेड हो जाता है. यही हाल हिंदुओं के व्रतों का है. एक समय देश में खासकर उत्तर भारत में ‘संतोषी माता व्रत’ की धूम मची थी लेकिन अब इस व्रत को लोग भूल से गए हैं.

हिंदू परिवारों में औरतों का हाल ‘7 दिन और 9 त्योहार’ जैसा है. सप्ताह के 7 दिनों में 1 दिन भी ऐसा नहीं है जिस दिन कोई व्रत न पड़ता हो. आजकल साईं बाबा वैभव लक्ष्मी को टक्कर दे रहे हैं, क्योंकि बाबा के नाम पर व्रत रखने का चलन चल पड़ा है. अब ‘वैभव श्री व्रत’ की तरह यह व्रत भी गुरुवार के दिन रखा जाता है. यही नहीं गुरुवार के दिन बृहस्पति व्रत का भी चलन है अर्थात एक दिन में 3 व्रत.

ये व्रत कैसे फैलते हैं यह भी एक रोचक घटना है. ज्यादातर व्रत पंडेपुजारियों और धर्म के दुकानदारों द्वारा किसी मंदिर या तीर्थ स्थानों से अफवाहें उड़ा कर फैलाए जाते हैं. तिलकधारी पेशेवर औरतों से महल्लों की महिलाओं में व्रत के फल का लाभ बताते हुए प्रचारप्रसार कराया जाता है.

साईं बाबा कौन थे, कब और कहां पैदा हुए इस का कोई निश्चित अतापता नहीं है. कथाकार के अनुसार साईं बाबा का यह व्रत ‘कामधेनु’ और ‘कल्पवृक्ष’ (दोनों काल्पनिक) की तरह सुंदर फल देने वाला है. व्रत रखने वाले पुरुषों व महिलाओं को धन, पुत्र, वर, वधू, नौकरी, पतिपत्नी को परस्पर प्रेम मिलने की गारंटी दी गई है. गड़ा हुआ धन, जमीनजायदाद, परीक्षा में सफलता, व्यापार में लाभ, स्त्रियों को अखंड सौभाग्यवती रहने, समस्त रोगों का निवारण, शत्रुनाश, मुकदे में जीत मिलेगी जैसे और भी कई तरह के पर्क्स जुड़े हुए हैं. कहने का मतलब यह है कि इस व्रत से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.

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