‘‘ क्याभारत के संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का इस्तेमाल धर्म आधारित राजनीति को प्रोत्साहन देने के लिए किया जा रहा है?’’ पिछले दिनों केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा यह कड़ी टिप्पणी दिल्ली की सड़कों पर फैलते धार्मिक ढांचों और अतिक्रमणों को हटाने में टालमटोल पर की गई थी. इतना ही नहीं, आयोग ने दिल्ली पुलिस को यह आदेश भी दिया था कि वह इस सिलसिले में अपील दायर करने वाले को और लोक निर्माण विभाग को यह सूचित करे कि उपरोक्त अवैध ढांचा हटाने के मामले में कब तक काररवाई करेगा?

मालूम हो कि रोहतक रोड पर अवैध ढंग से बने धार्मिक ढांचे को वहां से हटाने की जानकारी अपीलकर्ता ने मांगी थी. आयोग ने इस बात पर भी चिंता जताई थी कि किस तरह हर धार्मिक अतिक्रमण उस जटिल संकट को जन्म देता है, जिसे फिर सियासतदानों की तरफ से हवा दी जाती है.

गौरतलब है कि प्रार्थना स्थलों के अवैध निर्माणों या धार्मिक उत्सवों के अवसरों पर गैरकानूनी ढंग से पंडाल खड़ा करने आदि का मसला अब समूचे देश में चिंता का सबब बन रहा है, जिस के बारे में उच्चतम न्यायालय ही नहीं, बाकी अदालतें भी अपने निर्देश दे चुकी हैं. उदाहरण के तौर पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सभी राज्यों ने गिनती कर उसे यह भी सूचित किया है कि उन के यहां कितने अवैध धार्मिक स्थल हैं. ध्यान रहे कि ऐसे प्रार्थना स्थल सड़कों, चौराहों के अलावा गलीमहल्लों या अपार्टमैंट्स के अंदर भी तेजी से बन रहे हैं.

दुश्वार होती जिंदगी

पिछले दिनों राजस्थान के उच्च न्यायालय ने जयपुर की एक आवासीय सोसायटी में अवैध ढंग से पानी की टंकी पर बने मंदिर को गिराने का आदेश दिया. अपार्टमैंट के निवासी की निजता के अधिकार की याचिका को मंजूर करते हुए न्यायालय ने 2 माह के भीतर मंदिर को उपरोक्त स्थान से हटाने का निर्देश दिया तथा अवैध ढंग से मंदिर बनाने के लिए सोसायटी के 2 सदस्यों पर 50-50 हजार रुपए का जुर्माना भी ठोंका.

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