हमारे देश में धर्म के नाम पर लोगों की भावनाओं का शोषण सदियों से होता आ रहा है. इस के नवीनतम उदाहरण हैं रामपाल और आसाराम बापू. आसाराम ने भगवान की दलाली करतेकरते अपने चारों ओर लाखों अनुयायियों की न सिर्फ भीड़ एकत्र कर ली वरन आश्रमों के नाम पर करोड़ों रुपए की संपत्ति तथा ऐशोआराम के तमाम साधन भी जमा कर लिए.

धर्म के नाम पर चल रही तिजारत तथा लोगों के शोषण का दूसरा घिनौना चेहरा है रामपाल, जो अपनेआप को भगवान का अवतार घोषित कर चुका है और जो किसी भी माने में आसाराम से पीछे नहीं है. रामपाल पहली बार तब सुर्खियों में आया, जब 2006 में उस ने आर्य समाज जैसी एक पुरानी तथा प्राचीन धार्मिक संस्था को समाज विरोधी घोषित कर के उस के खिलाफ मुहिम छेड़ दी.  इसी साल उस पर अपना हरियाणा का करोंधा आश्रम बेचने में धोखाधड़ी करने का भी आरोप लगा. इस मामले में उस के खिलाफ अदालत में मुकदमा चल रहा है, लेकिन 42 बार अदालत की सुनवाई में हाजिर होने का सम्मन मिलने के बावजूद, वह अदालत में हाजिर न होने का दुस्साहस कर चुका है. इतना ही नहीं, रामपाल के खिलाफ कई अदालतों में अनेक आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं. ये महाशय तो इस माने में आसाराम से भी दो कदम आगे बढ़ गए कि इन्होंने अपनी सुरक्षा तथा पुलिस को अपने आश्रम में घुसने से रोकने के लिए अपने अनुयायियों की एक हथियारबंद फौज तक खड़ी कर डाली.

ये सारे मामले यह साबित करते हैं कि धर्म हमेशा ही बच्चों तथा महिलाओं या फिर यों कहें कि पूरे समाज के लिए सुरक्षित नैतिक विकास का जरीया नहीं होता और अकसर ये धार्मिक संस्थाएं अनैतिक गतिविधियों का गढ़ बन जाती हैं.

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