तेज बर्फीली हवाओं और कड़ाके की ठंड में जब हम गरम कपड़ों से खुद को ढक लेते हैं और रजाईकंबल ओढ़ कर सोते हैं, ऐसे में पशुपक्षी अपना बचाव कैसे करते हैं, क्या कभी सोचा है?

मेढक, सांप, कछुए, छिपकली, केंचुए कुछ मछलियां, जमीन के अंदर घुस कर शीत निद्रा में चली जाती हैं और सर्दियां खत्म होने पर इन की नींद खुलती है. केंचुआ 6-7 फुट जमीन के नीचे जा कर सोता है. काला भालू भी अपनी गुफा में पूरी सर्दी सोता रहता है. शीतनिद्रा लेने से पहले ये जीव भरपेट खापी लेते हैं और शरीर में वसा जमा कर लेते हैं. इसी तरह कीट पेड़ों की छालों के नीचे तथा छिपकलियां मकान की दराजों में जा कर सो जाती हैं. वैज्ञानिक भाषा में इस क्रिया को हाइबरनेशन कहा जाता है.

कुछ पक्षी सर्दियों से अनुकूलन कर के सर्दी में बने रहते हैं, किंतु कुछ पक्षी अधिक सर्दी वाले इलाकों से उड़ कर कम ठंड वाले क्षेत्रों में आ जाते हैं, इन में खंजन, कोयल, साइबेरियन सारस, जांघिल आदि पक्षी हजारों मील उड़ कर भारत आते हैं.

उत्तरी धु्रव में पाई जाने वाली चिडि़या आर्कटिक टर्न तो शीत शुरू होते ही उड़ चलती है और आधी पृथ्वी पार कर दक्षिण ध्रुव में जा कर रहती है. चमगादड़, कैरिबू भी कम सर्दी वाले प्रदेशों में चले जाते हैं. उत्तरी अमेरिका में पाई जाने वाली कुछ तितलियां उड़ कर मैक्सिको चली जाती हैं. कुछ पक्षी अपने खून को जाड़ों में गरम व सर्दियों में ठंडा कर के मौसम की मार से बचते हैं. इन के पंजों के रोएं व बाल भी इन्हें सर्दी से बचाते हैं. इसे उत्प्रवास (माइगे्रशन) तथा अनुकूलन (ऐडाप्टेशन) कहते हैं.

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