पहले की तरह घर बैठे खरीदारी अब फिर धूमधड़ाके से होने लगी है. भारत में ही नहीं, दुनिया भर में पहले दुकानें घरों तक पहुंचती थीं. व्यापारी सिर पर या पीठ पर सामान लादे घरघर जाते और घरवालियों को सामान दिखा कर बिक्री करते थे. एक घर में घुसे नहीं कि पूरा महल्ला जमा हो गया. मगर शहरों के बनने और बड़ेबड़े स्टोर बनने से यह परंपरा गायब हो गई थी. पर अब औनलाइन तरीके से लौट रही है.

कंप्यूटर खोलो, सामान के गुण, फोटो देखो, क्रैडिट कार्ड निकालो, पेमैंट करो और 2 दिन में सामान हाजिर. पहले यह आयोजन किताबों के लिए किया गया, अब हर चीज के लिए होने लगा है और छोटा बिचौलिया गायब होने लगा है. रिलायंस ने मुंबई में दालचावल व सब्जियां भी बेचनी शुरू कर दी हैं. पिज्जा की तरह घर बैठे रसोई का सामान हाजिर, सजावट का सामान भी व कपड़े भी. पर इस धंधे में जल्दी ही शातिर लोग उतरेंगे, जो दिखाएंगे कुछ भेजेंगे कुछ. ऐसे लोगों की कमी नहीं जो व्यापार को बिगाड़ने में कसर न छोड़ेंगे. यह आज के युग की सुविधा है, क्योंकि अब बाजारों में पार्किंग की किल्लत है और भीड़, धूलधक्कड़ असहनीय होने लगी है. बाजारों में दुकानों को महंगी जमीन पर सामान बेचना होता है और दुकान की सजावट भी महंगी हो गई है. यही नहीं, बेचने वालियां अब सजीधजी हों, यह भी जरूरी है.

औनलाइन खरीदारी में चाहे मजा नहीं आए पर सुविधा भरपूर है. यदि उस के पीछे नाम वाली कंपनियां हों तो थोड़ा संतोष रहता है कि सामान में खराबी नहीं होगी और जो कहा जाएगा वही बेचा जाएगा. औनलाइन शौपिंग में घर बैठे सामान का पैकेट खोलते हुए वैसा ही लगता है जैसा बच्चों को जन्मदिन पर मिले उपहारों को खोलते हुए लगता है.

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