प्यार, मनुहार और रूठनामनाना न केवल इंसानी आदत है, बल्कि पशुपक्षियों में भी यह गुण विद्यमान है. यह अलग बात है कि सभी पशुपक्षी ऐसी भावनाएं प्रकट नहीं करते. लेकिन कुछ पक्षी और पशु भी स्पष्ट तरीके से अपने प्रेम और समर्पण का इजहार करते हैं. पशुपक्षी भले इंसान की तरह रूठनेमनाने की कला में पारंगत न दिखते हों, मगर इन सब को ले कर जनून इन में भी इंसानों जैसा ही होता है.

इंसान ने प्रेम और निवेदन की तमाम कलाएं इन्हीं अबोलों से सीखी हैं. यह अलग बात है कि इंसान ने अपनी बुद्धि और कल्पनाशक्ति की बदौलत उन बेजबानों को भी मौलिक बना लिया है. प्रणय निवेदन की कला इंसान ने मूलत: पक्षियों से ही सीखी है. पक्षी धरती पर इश्क की कला के पुरखे माने जाते हैं. इंसान ने इश्क का जनून उन्हीं से उधार लिया है. भले ही वक्त के साथ इंसान पक्षियों से आगे निकल गया हो, लेकिन समागम, समर्पण और निवेदन की कला में उन का आज भी कोई सानी नहीं.

ग्लोबल वार्मिंग ने पूरे ईको सिस्टम को तहसनहस कर दिया है. पर्यावरण विनाश के कारण पक्षियों का कुदरती आवास छिन गया है, लेकिन पक्षियों का कलरव आज भी उतना ही मधुर है. वास्तव में यह कलरव या कोरस ही पक्षियों का प्रणय गीत है. एक समय गांवों में पक्षियों के इसी कलरव से सुबह की नींद खुलती थी. हालांकि पक्षियों के सामूहिक कलरव में यह पहचानना मुश्किल होता है कि इस में कौनकौन से पक्षियों का स्वर शामिल है, लेकिन कानों को शब्दरहित गीत बहुत भाता है. यों तो पक्षी हर मौसम में ही गुनगुनाते प्रतीत होते हैं, लेकिन गरमियों में खासकर बसंत पंचमी के बाद इन के स्वरों में कुछ ज्यादा ही मिठास घुल जाती है.

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