गृहशोभा का अप्रैल (द्वितीय), 2014 अंक बहुत पसंद आया. इस में विहंगम के अंतर्गत प्रकाशित टिप्पणी ‘बेईमानो आप का स्वागत है’ पढ़ कर मन गौरवान्वित हो उठा कि आज भी ऐसी निर्भीक संपादकीय टिप्पणियां लिखी जा रही हैं वरना तो आज तलवे चाटने की होड़ में इतना कटु सत्य कहने की हिम्मत रखने वाले न के बराबर ही हैं.

भ्रष्टाचारमुक्त देश का दावा करने वाले ये नेता खुद बेईमान, झूठे और मक्कार हैं. ये अरबों रुपए डकार कर जेल जाते तो हैं पर वहां भी खूब सुख भोगते हैं. बाद में इसे विरोधी पार्टियों की साजिश बता कर गलीगली बेशरमों की तरह घूमते हैं और अपने निर्दोषिता के चालीसा से जनता को बेवकूफ बनाते हैं. क्या है कोई ऐसी अदालत जो इन्हें इन के कुकर्मों की सजा दे सके? शायद नहीं, क्योंकि कानून बनाने वाले भी तो यही होते हैं.

-रेणु श्रीवास्तव, बिहार

गृहशोभा के अप्रैल (द्वितीय), 2014 अंक में प्रकाशित शीर्ष लेख ‘जब दर्द मिले अपनों से’ काफी पीड़ादायक है. कोई भी पुरुष खासकर जिस से कोई रिश्ता जुड़ा हो, महिला के साथ अमानवीय व्यवहार करने लगता है तो वाकई यह बेहद अफसोसजनक स्थिति होती है. किंतु रिश्तों की दुहाई दे कर महिलाओं/लड़कियों द्वारा अपमान सहते रहना और भी गलत है.

हमें याद रखना होगा कि महिलाओं में केवल धैर्य ही नहीं, बल्कि हिम्मत और बुद्धि का भी शानदार संगम है. बस आवश्यकता इस बात की है कि महिलाएं और लड़कियां घर, बाहर यानी हर जगह सजग रहें और खुद पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठा कर कानूनी सहायता लें. तभी हम समाज में होने वाली ऐसी घटनाओं को रोकने में सफल होंगे. महिलाएं हमेशा अपने साथ महिला हैल्प लाइन नंबर 1091 रखें.

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