लड़कियों की परेशानियां घर और बाहर दोनों ही जगहों पर हैं. घर के अंदर भी वे शोषण का शिकार होती हैं, तो कई बार घर वालों की मरजी तो कई बार घर वालों की बिना जानकारी के वे वेश्यावृत्ति करने के लिए मजबूर कर दी जाती हैं. नाबालिग लड़कियों को नौकरी दिलाने और शादी कराने जैसे झांसे दे कर देह के बाजार तक पहुंचा दिया जाता है. सचाई पता चलने पर कई बार लड़कियां वहां से भागने की कोशिश करती हैं, तो कई बार समझौता कर के देहधंधे को मजबूर हो जाती हैं. विनीता ग्रेवाल की संस्था ‘नई आशा’ ऐसी लड़कियों को सहारा देने का काम करती है, जो अपने घर नहीं जाना चाहतीं या जिन के घर वाले उन्हें घर में नहीं रखना चाहते. इस संस्था के शैल्टर होम में 70-80 लड़कियां तक एकसाथ रह सकती हैं. यहां उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का हुनर सिखाया जाता है. कुछ लड़कियां पढ़ाई भी करती हैं.

‘नई आशा’ की डायरैक्टर विनीता ग्रेवाल कहती हैं कि शैल्टर होम में लाने के बाद लड़कियों के जीवन को सुखद बनाना सब से अहम और कठिन काम होता है. विनीता ग्रेवाल से हुई बातचीत में हम ने इसी बात को समझने की कोशिश की:

लड़कियों का शोषण बड़ी परेशानी है. आप इसे कैसे देखती हैं?

जब लड़की हमारे शैल्टर होम में आती है, तो बहुत परेशान होती है. वह भावनात्मक रूप से पूरी तरह टूट चुकी होती है. उस के मन में समाज के खिलाफ विद्रोह का स्वर होता है. उसे लगता है कि शैल्टर होम भी उस पिंजरे के ही समान है. वह हम पर यकीन नहीं करती. शैल्टर होम में काम कर रहे लोगों से भी वह नाराज हो जाती है. यहां लड़कियां कई बार रोतीं, चिल्लातीं और झगड़ती भी हैं. उन्हें जब परिवार के सदस्यों की तरह समझाया जाता है, तब कहीं जा कर कई महीनों के बाद समझ पाती हैं कि उन के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा.

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