धर्म की नगरी काशी ऐसी जगह है जहां जानवरों में भी भगवान बसते हैं. वैसे तो हर मनुष्य में भगवान बसते हैं, ऐसा धर्मगुरुओं का कहना है. पर जब एक आदमी दूसरे आदमी की हत्या करता है तब उसे भगवान क्यों  नजर नहीं आते. वहीं पशुओं में भगवान का रूप देख कर हर हिंदू उन्हें मारने से बचता है. भले ही वे जानवर इनसानों को मारने या क्षति पहुंचाने में कोताही न बरतते हों मगर हिंदू बरतते हैं. इसी का कुपरिणाम है कि ऐसे जानवरों का उपद्रव बढ़ता जा रहा है.

मंदिरों के शहर काशी में भले ही मेहनत से कुछ न मिले पर धर्म के नाम पर अच्छी कमाई हो जाती है. कुछ नहीं तो एक मरे हुए बंदर को सड़क पर रख दीजिए. फिर देखिए आननफानन में सैकड़ों रुपए उस बंदर की अंत्येष्टि के नाम पर जमा हो जाएंगे. फिर कीजिए न ऐश, कौन देखता है?

जानवरों में भगवान देखने का ही नतीजा है कि यहां ऐसे जानवरों की भरमार हो गई है, जो आएदिन इनसानों को मारते या काटते रहते हैं. जैसे बंदरों को ही लें. ये हर धर्मस्थलों पर बेखौफ घूमते हैं. अब भला किस में हिम्मत है, जो इन्हें मारने की जुरअत करे?

इनसानों से ज्यादा जानवरों को अहमियत

आज काशी में बंदरों की संख्या जिस तरीके से बढ़ गई है, उस से आम आदमी का जीना हराम हो गया है. समूह में रहने वाले ये बंदर मनुष्यों द्वारा काटे गए जंगलों से भाग कर शहरों में आ धमकते हैं और खानेपीने के सामानों के लिए इनसानों पर आएदिन हमला करते हैं. उस पर तुर्रा यह कि कोई इन्हें मार नहीं सकता. मारने का लाइसैंस लिया जा सकता है, तो भी रुद्रावतार हनुमान के वंशज को मार कर कोई पाप का भागीदार नहीं बनना चाहता.

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