हिंदू लड़कियों को मुसलिम युवकों से प्रेम करने का अधिकार है या नहीं, आजाद भारत में यह सवाल अब महत्त्व का होता जा रहा है. केरल उच्च न्यायालय ने एक हिंदू लड़की हादिया के विवाह को खारिज कर दिया, क्योंकि उस ने धर्म परिवर्तन कर के एक मुसलिम युवक से विवाह किया था. कट्टर हिंदूवादी संगठन इस तरह के विवाहों को लव जिहाद कह रहे हैं.

उन का मानना है कि यह सुनियोजित ढंग से फिल्म ‘कुर्बान’ की तरह है जिस में सैफ अली खान पहले न्यूयौर्क की एक हिंदू प्रोफैसर करीना कपूर, जो अपने बीमार पिता को देखने भारत आती है, से विवाह करता है और फिर उसे लंदन ले जाता है, जहां उसे आतंकवादी षड्यंत्र में फ्रंट के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

धर्म परिवर्तन कर के प्रेम विवाह करना अपनेआप में सही नहीं है. यदि धर्म प्रेम में आडे़ नहीं आ रहा है, तो विवाह में भी नहीं आना चाहिए और बिना धर्म परिवर्तन किए ही विवाह करना चाहिए. भारतीय कानूनों में इस तरह के विवाह की स्पैशल मैरिज ऐक्ट के अंतर्गत सुविधा है और आम बोलचाल की भाषा में इसे कोर्ट मैरिज कहते हैं.  वैसे तो सभी विवाह बिना धार्मिक रीतियों के इस कानून के अंतर्गत होने चाहिए और जिस यूनिफौर्म सिविल कोड की बात हिंदूवादी कट्टर सोतेजागते करते हैं वह कांग्रेसी जमाने से मौजूद है. इस कानून के अंतर्गत विरासत का कानून भी धार्मिक बंधनों से मुक्त हो जाता है और संपत्ति बिना लागलपेट मृत्यु बाद बंटती है. तलाक भी सरल है और गोद लेनादेना भी.

जिन्हें जाति, गोत्र, ऊंचनीच की दीवारें तोड़ कर प्रेम विवाह करना है, उन्हें धर्म के बंधन को भी तोड़ना ही होगा. दो धार्मियों के बीच न हिंदू विवाह हो सकते हैं न मुसलिम अथवा फिर ईसाई.  इसलिए प्रेम  के बाद विवाह की सोच रहे हैं, तो रस्मोरिवाजों का चक्कर तो छोड़ना ही होगा. धर्म परिवर्तन चाहे हिंदू से मुसलिम हो या मुसलिम से हिंदू गलत ही है. सामाजिक सुरक्षा चाहिए तो दोनों को अपनाअपना धर्म छोड़ना होगा. वैसे भी इन विवाहों में घर वालों के छूटने का रिस्क तो रहता ही है.  केरल उच्च न्यायालय ने एक प्रेम विवाह को सामाजिक समस्या के आईने से न देख कर राजनीतिक मैग्नीफाइंग ग्लास से देखा है और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर तथ्य पता करने के लिए नैशनल इनवैस्टीगेशन एजेंसी बैठा कर आदमीऔरत के संबंध को समाज भर में नंगा कर दिया है. यह वही सुप्रीम कोर्ट है जिस ने हाल ही में निजता पर लंबाचौड़ा सुखद निर्णय दिया है. क्या विवाह करने का निजी अधिकार भी जांच एजेंसियों की मुहर के बाद लागू होगा?

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