उन लड़कियों की हिम्मत ही कही जाएगी जिन्होंने तरबूज की कटी फांकों को ले कर खुलेआम जुलूस निकाला और एक भद्दे सैक्सिएस्ट कमैंट कहने वाले कट्टर मुसलिम प्रोफैसर को शर्मिंदा किया. इन श्रीमान ने धर्म की रक्षा के नाम पर कहा था कि लड़कियों की ड्रैसें ऐसी होती हैं कि हिजाब पहनने के बावजूद वे अपनी छातियां कटे तरबूज की तरह दिखाती फिरती हैं.

जैसे ही इस महान प्रवचन का वीडियो लौंच हुआ लड़कियों का एक हुजूम कटे तरबूज ले कर केरल के कोझिकोड में फारुक ट्रैनिंग कालेज में जमा हो गया और मांग की कि जौहर मुनव्वर के खिलाफ ऐक्शन लिया जाए.

हर धर्म के कट्टरपंथी अपनी मर्दानगी को जताने के लिए औरतों के अंगों को ले कर कटाक्ष करते रहते हैं और उन पर औरतें अकसर सिर झुका कर चुप हो जाती हैं. यही चुप्पी उन दकियानूसी आदमियों को प्रेरित करती है कि वे औरतों को गुलामी की जंजीरों में बांधे रखने के लिए धर्म का सहारा लें. चूंकि धर्म का हस्तक्षेप हर घर में बचपन से ही शुरू हो जाता है इसलिए धार्मिक आदेश हर कदम पर लोगों को हड़का कर रखते हैं. इस प्रकार के कमैंट औरतों का जीना हराम कर देते हैं.

अब लोगों का मुंह बंद तो नहीं करा जा सकता पर यह अवश्य संभव है कि उन्हें इस तरह की बातों के लिए नेमिंग व शेमिंग की जाए और उन्हें अफसोस करने के लिए मजबूर किया जाए. हिजाब एक तरह से इसलाम की अपने मर्दों को काबू में न रखने की असफलता का प्रतीक है. अगर इसलाम ने मर्दों को जताया होता कि वे किसी औरत को उस की अपनी मरजी के खिलाफ घूर भी नहीं सकते तो हिजाब की जरूरत ही नहीं होती. घूंघट भी उसी परंपरा का हिस्सा है.

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