जिन्हें सब कुछ मिला है, वे कुछ न कुछ कमियां खुद में निकालकर जिंदगी से मायूस होकर गलत कदम उठाकर जिंदगी को खत्म कर देते हैं, अपराधी बन जाते हैं या फिर डिप्रेशन में चले जाते हैं. इस दौर में कुछ ऐसे भी इंसान है, जिन्होंने अपनी कमी को ही अपनी शक्ति बनाकर संघर्ष कर अपनी मुकाम हासिल की. ऐसी ही चरित्र की धनी हैं, कर्नाटक के बंगलुरु की तिरुमा गोंडाना हाली गांव की रहने वाली  23 वर्षीय विद्या येल्लारेड्डी, जिन्होंने नेत्रहीन होने के बावजूद तकनीक के क्षेत्र में पढ़ाई पूरी की.

इसके लिए उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा, लेकिन वह कभी पीछे नहीं हटी और कामयाबी हासिल की. आज वह एक ऐसी एनजीओ खोलना चाहती हैं, जो गणित और विज्ञान पढ़ने की इच्छा रखने वाले नेत्रहीन बच्चों को सहयोग दे. विद्या को इस कामयाबी के लिए रीबोक ने ‘फिट टू फाइट’ पुरस्कार से सम्मानित किया है.

विद्या जन्म से नेत्रहीन हैं, लेकिन उनके माता-पिता ने उसे आम लड़की की तरह ही पाला है, उसे कभी एहसास नहीं हुआ कि वह किसी से कम है. वह कहती है कि मेरे माता-पिता कम पढ़े-लिखे हैं, लेकिन उनका सहयोग ही मुझे यहां तक ले आया है. गांव में मेरा जन्म होने की वजह से वहां किसी भी प्रकार की जानकारी उन्हें नहीं थी कि वे मुझे किसी डाक्टर के पास ले जाएं या कोई इलाज मेरी आंखों के लिए करवाएं. मैं उनकी पहली संतान और प्रीमेच्योर बच्चा होने की वजह से वे बहुत परेशान थे. उन्हें मुझे स्वीकारने में भी समय लगा. मुझसे छोटी दो बहनें नार्मल हैं.

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