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कपड़ेसुखातेसुखाते सरोज ने एक नजर सामने वाले घर की छत पर भी डाली. उस घर में भी अकसर उसी वक्त कपड़े सुखाए जाते थे. हालांकि उस घर में रहने वाली महिला से सरोज की अधिक जानपहचान नहीं थी, फिर भी कपड़े सुखातेसुखाते रोजाना होने वाले वार्त्तालाप से ही आपसी दुखसुख की बातें हो जाती थीं. बातों ही बातों में सरोज को पता चला कि उस महिला का नाम प्रिया है और उस के पति का नाम प्रकाश. प्रकाशजी एक बैंक औफिसर थे तथा घर के पास ही एक बैंक में कार्यरत थे. प्रकाश एवं प्रिया की एक छोटी बेटी थी- पाखी. छोटा सा खुशहाल परिवार था. छुट्टी के दिन वे अकसर घूमने जाते थे.

प्रकाशजी बहुत ही सुंदर एवं हंसमुख स्वभाव के थे, यह सरोज को भी नजर आता था पर प्रिया स्वयं भी सदा उन की तारीफों के पुल बांधा करती थी. ‘‘देखिए न भाभीजी, आज ये फिर मेरे लिए नई साड़ी ले आए. मैं ने तो मना किया था, पर माने ही नहीं. मेरा बहुत खयाल रखते हैं ये,’’ एक दिन प्रिया ने बड़े ही गर्व से बताया.

‘‘अच्छी बात है... सच में तुम्हें इतना हैंडसम, काबिल और प्यार करने वाला पति मिला है,’’ कह सरोज ने मन ही मन सोचा, काश दुनिया में सभी विवाहित जोड़े इसी प्रकार खुश रहते तो कितना अच्छा होता. एक आदर्श पतिपत्नी हैं दोनों. सरोज और प्रिया की बातचीत का मुद्दा अकसर उन का घरपरिवार ही हुआ करता था, जिस में भी प्रिया की 80 फीसदी बातें प्रकाशजी की प्रशंसा और प्यार से जुड़ी होती थीं.

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