‘‘निक्की डार्लिंग, गुड मौर्निंग,’’ नर्स ने निक्की के वार्ड में प्रवेश करते हुए कहा.

‘‘गुड मौर्निंग सिस्टर,’’ निक्की ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘अब कैसा महसूस कर रही हो?’’

‘‘पहले से बेहतर हूं, पर बहुत कमजोरी लग रही है,’’ निक्की ने करवट लेते हुए कहा.

इतनी कम उम्र में निक्की के साथ कुछ ऐसा हुआ कि उस का शरीर कमजोर हो गया है.

‘‘थोड़ी देर में डाक्टर साहब आएंगे तो बता देना. अभी आराम करो,’’ कह नर्स चली गई.

निक्की सोचने में पड़ गई, ‘अपनी इस हालत की जिम्मेदार मैं खुद हूं या मेरी मां? शायद हम दोनों. समझ में नहीं आता है कि किसे अपना समझूं, अपने रिश्तेदार को या बाहर वालों को? अकसर रिश्तों की आड़ में ही लड़कियां ज्यादा शोषित होती हैं. काश, मां ने मेरी बात सुन ली होती... मेरी भी गलती है. जब वह बारबार मुझे छूने की कोशिश करता था तभी मुझे सतर्क हो जाना चाहिए था. तब आज यह दिन न देखना पड़ता हमें. पापा डिप्रैशन में हैं, मां का रोरो कर बुरा हाल हो गया है और मैं यहां अस्पताल में पड़ी हूं.’

निक्की को उस दिन की बातें याद आने लगीं जब आशा (निक्की की मां) तरहतरह के पकवान बना कर टेबल पर रख रही थीं और गुनगुना भी रही थीं.

निक्की ने स्कूल से आते ही पूछा, ‘‘मां, क्या बना रही हो? बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है. कोई मेहमान आने वाला है क्या?’’

‘‘मोहित आ रहा है... उसे कितने दिनों बाद देखूंगी. अब तो बड़ा हो गया होगा. मैं ने उसे अपनी गोद में बहुत खिलाया है,’’ आशा बहुत खुश थीं कि उन की बड़ी बहन का बेटा आ रहा है.

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