सरकार ने सार्वजनिक घोषणा करते हुए ऐतिहासिक लालकिले को एक निजी समूह को गोद दे दिया है. सरकार का कहना है कि पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ऐसा किया गया है. सरकारी गोदी में पहले से ही काफी टै्रफिक है, इसीलिए सरकार ने ट्रैफिक को निजी गोदी की तरफ डाइवर्ट करने के लिए यह कदम उठाया है. इस पर विपक्ष ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए सरकार के कदम पर सवाल उठाए हैं. सरकार के कदम और विपक्ष के सवालों के बीच की लयबद्धता, गणतंत्र दिवस पर होने वाली परेड की तालबद्धता की तरह उच्चकोटि की होती है.

जिस तरह प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरों को गोद दिए जाने का सिलसिला शुरू हुआ है, उस के बाद तो अशिक्षा और भुखमरी के मन में भी देशी घी के लड्डू आरडीएक्स की तरह फूट रहे हैं कि शायद उन को भी गोद लेने वाला कोई संपन्न व्यक्ति पैदा हो जाए. प्राचीन धरोहरें हमारी महानताओं और अपेक्षाओं का बोझ उठातेउठाते सरकारी वैबसाइट्स की तरह थक गई थीं.

‘डोबली स्पीकर’ से समय की यही पुकार थी कि प्राचीन धरोहरों की थकान और लू उतारने के लिए उन्हें गोद में ले कर रिवाइटल और स्नेह का इंजैक्शन दिया जाए. जमीन और उस की जायदाद से जुड़े कुछ जागरूक किस्म के लोग अफवाह और भय फैला रहे हैं कि सरकार के पास देश की विरासत को संभालने की क्षमता नहीं है, इसलिए वह इन विरासतों को निजी हाथों में दे रही है, जबकि सरकार का कहना है कि वह इन प्राचीन विरासतों को निजी हाथों में इसलिए दे रही है ताकि सरकारी हाथ, सरकारी विरासत अर्थात अकर्मण्यता, की देखरेख करने के लिए हमेशा फ्री और सतर्क रहें.

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