उस शाम पहली बार राजीव के घर वालों से मिल कर अंजू को अच्छा लगा. उस के छोटे भाई रवि और उस की पत्नी सविता ने अंजू को बहुत मानसम्मान दिया था. उन की मां ने दसियों बार उस के सिर पर हाथ रख कर उसे सदा सुखी और खुश रहने का आशीर्वाद दिया होगा. वह राजीव के घर मुश्किल से आधा घंटा रुकी थी. इतने कम समय में ही इन सब ने उस का दिल जीत लिया था.

राजीव के घर वालों से विदा ले कर वे दोनों पास के एक सुंदर से पार्क में कुछ देर घूमने चले आए. अंजू का हाथ पकड़ कर घूमते हुए राजीव अचानक मुसकराया और उत्साहित स्वर में बोला, ‘‘इनसान की जिंदगी में बुरा वक्त आता है और अच्छा भी. 2 साल पहले जब मेरा तलाक हुआ था तब मैं दोबारा शादी करने का जिक्र सुनते ही बुरी तरह बिदक जाता था लेकिन आज मैं तुम्हें जल्दी से जल्दी अपना हमसफर बनाना चाहता हूं. तुम्हें मेरे घर वाले कैसे लगे?’’

‘‘बहुत मिलनसार और खुश- मिजाज,’’ अंजू ने सचाई बता दी. ‘‘क्या तुम उन सब के साथ निभा लोगी?’’ राजीव भावुक हो उठा.

‘‘बड़े मजे से. तुम ने उन्हें यह बता दिया है कि हम शादी करने जा रहे हैं?’’ ‘‘अभी नहीं.’’

‘‘लेकिन तुम्हारे घर वालों ने तो मेरा ऐसे स्वागत किया जैसे मैं तुम्हारे लिए बहुत खास अहमियत रखती हूं.’’ ‘‘तब उन तीनों ने मेरी आंखों में तुम्हारे लिए बसे प्रेम के भावों को पढ़ लिया होगा,’’ राजीव ने झुक कर अंजू के हाथ को चूमा तो वह एकदम से शरमा गई थी.

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