मां की खराब सेहत ने नेहा को अत्यधिक चिंता में डाल दिया. डाक्टर ने आवश्यक परीक्षण के लिए शाम को बुलाया था. छोटी बहन कनिका को आज ही दिल्ली लौटना था. वे साशा के साथ बैठ कर सभी आवश्यक कार्यक्रमों की रूपरेखा तय कर रही थीं.

तभी रमेश का फोन आया, ‘‘मैडम, मैं आप की गाड़ी सागर ले जाऊं? आप तो अभी यहीं हैं.’’

‘‘हां, मैं यहीं हूं. लेकिन मेरी मां बहुत बीमार हैं. गाड़ी तुम्हें कैसे दे सकती हूं? मुझे जरूरत है,’’ नेहा बोली.

‘‘लेकिन मुझे दोस्त की शादी में सागर जाना है. बताया तो था आप को.’’

‘‘बताया था, लेकिन मैं ने गाड़ी सागर ले जाने की अनुमति तो नहीं दी थी... यह कहा था कि यदि मुझे ज्यादा दिन रुकना पड़ा तो तुम गाड़ी वापस बालाघाट ले जाना. बहरहाल मैं अधिक दिन नहीं रुक रही हूं.’’

‘‘लेकिन मैं ने आप के कारण सागर के टिकट कैंसिल करा दिए. अब क्या करूं?’’

‘‘रमेश मैं ने साफ कहा था कि मां के पास ज्यादा दिन रुकने की स्थिति में गाड़ी वापस भेज दूंगी. लेकिन गाड़ी सागर ले जाने की बात तो नहीं हुई थी... वैसे भी उधर की सड़क कितनी खराब है, तुम्हें मालूम है... मैं गाड़ी नहीं दे सकती. मां को चैकअप के लिए ले जाने के अलावा और बीसियों काम हैं,’’ नेहा का मूड बिगड़ गया.

नेहा को दफ्तर में ही मां की बीमारी की सूचना मिली थी और वे बलराज से बात कर ही रही थीं कि रमेश ने सुन लिया और झट से बोल पड़ा, ‘‘मैडम, मैं आप को छुट्टी की दरख्वास्त देने आया था. सागर जाना है दोस्त की शादी में. अब आप कार से भोपाल जा रही हैं तो मैं भी साथ चलूं? अकेला ही हूं. बीवीबच्चे अंकल के घर में ही हैं अभी... उन्हें वापस भी लाना है.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...