दुनिया भर में भारत को अपनी संस्कृति, बदलते मौसम और प्रकृति के अद्भुत नजारों के लिए जाना जाता है. यहां अलग-अलग ऋतुओं के स्वागत में तीज-त्योहार मनाए जाते हैं. हमारे यहां जब सावन का महीना आता है तो बारिश में सराबोर यहां के लोग अपनी खुशी को पर्व के रूप में जाहिर करते हैं.

केरल की फेमस बोट रेस भी बारिश के मौसम में ही होती है. इस रेस को यहां 'वल्लमकली' कहते हैं जिसे देखने दुनियाभर से टूरिस्ट जुटते हैं.

नेहरू ट्रॉफी बोट रेस

केरल में अल्लपुझा के बैकवॉटर की पुन्नमड झील में होने वाली यह बोट रेस सबसे प्रसिद्ध है. ये रेस हर साल अगस्त के दूसरे शनिवार को होती है. इस आयोजन में चुंदन वेलोम (स्नेक बोट) की पारंपरिक दौड़ के अलावा पानी पर झांकियां भी होती हैं. इस कॉम्पिटीशन के नजारे वाकई में  अद्भुत होते हैं.

पय्यपड़ बोट रेस

अलप्पुझा में ही पय्यपड़ नदी में एक अन्य बोट रेस होती है. केरल में नेहरू ट्रॉफी बोट रेस के बाद स्नेक बोट की सबसे बड़ी रेस यही है इस रेस की शुरुआत हरीपाद मंदिर और सुब्रह्मण्य स्वामी मंदिर में मूर्ति की स्थापना से हुई. कहते इस मूर्ति स्थापना के दौरान वहां ग्रामीणों को एक सपना आया, जिसके बाद वे कायमकुलम झील में एक चक्रवात तक पहुंचे, जहां उन्हें मूर्ति प्राप्त हुई. उसी समय से यहां बोट रेस की परंपरा चली आ रही है.

कुमारकोम बोट रेस

जिस दिन पय्यपड़ में बोट रेस होती है, उसी दिन प्रसिद्ध रिजॉर्ट कुमारकोम में भी श्री नारायण जयंती बोट रेस होती है. यह रेस केरल में होने वाली बाकी रेसों से अलग है. यह रेस महान समाज सुधारक श्री नारायण गुरु के गांव में आने की याद में आयोजित की जाती है. बताया जाता है कि नारायण गुरु 1903 में नाव में बैठकर अल्लपुझा से कुमारकोम आए थें. उनके साथ कई नावों में लोग थे. इसलिए हर साल श्री नारायण गुरु की जयंती पर उनकी याद में यह बोट रेस होती है.

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