उत्तरी मध्य प्रदेश में बेतवा नदी के किनारे बसा ओरछा अपने भव्य मंदिरों, महलों और किलों के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध है. झांसी से मात्र 16 किमी. की दूरी पर स्थित यह जगह अतीत की कई कहानियों को बयां करती है. हरा-भरा और पहाड़ियों से घिरा ओरछा राजा बीरसिंह देव के काल में बुंदेलखण्ड की राजधानी हुआ करता था.

इतिहास

परिहार राजाओं के बाद ओरछा चन्देलों और फिर बुंदेलों के अधिकार में रहा. हालांकि चन्देल राजाओं के पराभव के बाद ओरछा श्रीहीन हो गया, लेकिन जब बुंदेलों का शासन आया तो ओरछा ने पुन: अपना गौरव प्राप्त किया. बुंदेला राजा रुद्रप्रताप ने 1531 ई. में नए सिरे से इस नगर की स्थापना की. उन्होंने नगर में मंदिर महल और किले का निर्माण करवाया. यही नहीं, उनके बाद के राजाओं ने भी सौंदर्य से परिपूर्ण कलात्मक इमारतें और भवन बनवाए.

मुगल शासन में ओरछा

मुगल शासक अकबर के समय यहां के राजा मधुकर शाह थे जिनके साथ मुगल सम्राट ने कई युद्ध किए थे. जहांगीर ने वीरसिंहदेव बुंदेला को, जो ओरछा राज्य की बड़ौनी जागीर के स्वामी थे, पूरे ओरछा राज्य की गद्दी दी थी. इसके बदले में वीरसिंहदेव ने जहांगीर के कहने से अकबर के शासन काल में अकबर के विद्वान दरबारी अबुलफजल की हत्या करवा दी थी. वहीं जब शाहजहां का शासन काल आया तो मुगलों ने बुन्देलों से कई असफल लड़ाइयां लड़ीं. किंतु अंत में जुझार सिंह को ओरछा का राजा स्वीकार कर लिया गया.

ओरछा की सुंदरता

ओरछा की विरासत यहां की इमारतों में कैद है. आप महल, किले, पवित्र भव्य मंदिर तथा बुंदेलखण्ड के संस्कृति से जुड़ी प्रतिमा और चित्रकला को देखकर अपने कैमरे में कैद किए बिना रह नहीं सकते. मंदिरों और किलों की खूबसूरती का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इनकी चमक आज भी बरकरार है.

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