किसी भी आपदा में युवाओं का फर्ज होता है कि वे पीडि़तों की सेवा करने में अपना तनमनधन लगाएं. अफसोस की बात यह है कि पिछले सालों के दौरान हुई धर्म की बेहद गलत राजनीति व उस के जम कर हुए प्रचार ने सब को बेहद इंट्रोवर्ट बना दिया. लिहाजा, चारों ओर केवल मैं, मेरे धर्म और मेरे धर्म के गुरु की बात हो रही है.

कोरोना में किसी की सहायता करना थोड़ा जोखिम का काम है, फिर भी फर्ज सम झ कर या पैसे के लिए एंबुलैंस चल रही हैं, अस्पताल चल रहे हैं, वैक्सीनेशन किया जा रहा है. श्मशानों में अपेक्षाकृत कई गुना ज्यादा लाशें जलाई जा रही हैं. पर इन सब कामों में सैल्फ को छोड़ कर कम्यूनिटी के लिए, दूसरों के लिए काम करने वाले नदारद हैं.

एक समाचारपत्र ने उत्तर प्रदेश के कासगंज शहर के दौरे के दौरान पाया कि राजनीतिबाज, पौलिटिकल वर्कर और धार्मिक सेवाओं का बिल्ला लगाने वाले लोग राहत पहुंचाने के काम से नदारद थे. हां, वहां पंचायत चुनाव हो रहे थे तो बाजेगाजे व भीड़ के साथ छोटेमोटे नेता घरघर का दरवाजा खटखटा रहे थे, कोई तकलीफ पूछने के लिए नहीं, कुछ देने के लिए नहीं बल्कि वोट मांगने के लिए.

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यह पाठ धर्मजनित पौलिटिकल पार्टी ने पढ़ाया है. उस का कहना है कि सेवा या तो धार्मिक पार्टी की होती है या धर्म की. बाकी सब बेकार है. अगर सेवा में मेवा नहीं मिलता, तो भूल जाओ. गीता के पाठ में ‘कर्म किए जाओ’ इसलिए है कि कृष्ण की खातिर कौरवों को मारे जाओ, बंधुबांधवों पर पड़ने वाले फल की चिंता न करो.

धर्म के दुकानदारों का नियम ही है कि इस हाथ दर्शन लो उस हाथ से दान दो. पन्ने पर पन्ने हमारे ग्रंथों के भरे पड़े हैं कि दान दो. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर के पीएम केयर फंड बनाया था मार्च 2020 में और अरबों रुपए जमा कर लिए. पर जब हिसाब मांगा जाने लगा, तो उन्होंने साफ कह दिया यह तो उन का निजी फंड है. जैसे लोगों ने गुरु को चंदा चढ़ाया और भूल गए, वैसे ही मोदी को पैसा दो और भूल जाओ.

नेताजी की इस मैं यानी ईगो ने तकरीबन हर युवा को डसा है. सेवा करने से पहले वह देखता है कि उसे क्या मिलेगा. सामने वाले घर में पत्नी मर गई, बच्चे छोटे हैं. पति से संभल नहीं रहे. मजाल है कि युवा जा कर हाथ बंटा दें. क्या मिलेगा, पता नहीं चलेगा तो क्या वे फटकेंगे. बहाना है कि न जाने कौन संक्रमित है, कौन कोविड से ग्रसित है. वही युवा बाइक पर जोमैटो या स्विगी की जैकेट पहने डिलीवरी को तैयार हैं क्योंकि पैसे मिल रहे हैं. जबकि, जिस के घर में सडन डैथ हुई है वह किसी की सपोर्ट चाहता है, हीलिंग टच चाहता है लेकिन फिर भी कोई युवा आगे नहीं आ रहा हालांकि यह सपोर्ट कोई भी यूथ बिना कुछ खर्च किए दे सकता है.

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आज की राजनीति ने पहले से सैल्फिश समाज को और ज्यादा मतलबी बना दिया है. कोविड ने सब को घरों/कमरों में बंद कर दिया था, लेकिन नेताजी और धर्म के दुकानदारों ने तो उन का दिमाग भी बंद कर दिया है.

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