देशभक्ति न नारों से आती है न सिर्फ पूजापाठ हालांकि दोनों को ही जरूरत हर युग में देशभक्ति दर्शाने और उसे अंधभक्ति बनाने में पड़ी है. यूक्रेन में देश भक्ति का मामला कुछ और ही है. यहां न तो राष्ट्रीय व्लादिमीर जेलेंस्की ने नारेबाजी की और न ही धर्माचार्य ने ‘हिंदू खतरे में हैं’ जैसा नारा लगाया. यूक्रेन के निवासियों ने ही नहीं. यूक्रेन से बाहर बसे यूक्रेनियों ने भी यूक्रेन पहुंच कर रूसी हमले का मुकाबला करने का फैसला ले लिया.

लगभग 1, 40,000 जवान बाहर से यूक्रेन पहुंच चुके हैं कि वे देश की रक्षा करने के लिए जान की बाजी लगाएंगे. यूक्रेनी आमतौर पर औरतों, बच्चों और बूढ़ों को देश से बाहर भेज रहे हैं और खुद देश की रक्षा में लग गए हैं. यह नारेबाजी की देन नहीं, यह चर्च की पहल पर नहीं हो रहा. यह तो एक बदमाश को सही सबक सिखाने का कमिटमैंट है.

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यूक्रेनी ही नहीं लगभग 10,000 दूसरी नागरिकता के लोग भी यूक्रेन पहुंच गए हैं जो लोकतंत्र और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए लडऩे के लिए रूस की भारी भरकम फौज को सबक सिखाने को तैयार हैं. यह रूस यूक्रेन युद्ध वियतनाम, इराक, लीबिया, अफगानिस्तान की लड़ाइयों अपर्ग दिख रहा है. लोकतंत्र प्रेमी सभी देश एक तरफ हैं. भारत, पाकिस्तान, चीन जैसे देशों की मरकलें जो लोकतंत्र अब कोरे वोट तंत्र में बदल चुकी हैं या बदलने की कोशिश कर रही हैं, रूस को खुला या छिपा सपोर्ट दे रही हैं. यह लड़ाई तो आम जनता के हकों की है क्योंकि रूस के व्लादिमीर पुतिन अपने टैंकों से सोवियत यूनियन की तर्ज पर रौंद कर मास्को का साम्राज्य बनाना चाह रहे हैं.

यूक्रेनी और दूसरे देशों के लोकतंत्र के समर्थक युवा रूस के मंसूबों पर पानी फेर देने के चक्कर में अपनी जान की बाजी लगाने को तैयार हैं. देशभक्ति इसे कहते हैं जिस का उद्देश्य सिर्फ कुछ शासकों या धर्मगुरूओं की रक्षा करना न हो. दुनिया में ज्यादातर युद्ध शासकों की सत्ता को फैलाने या बचाने के लिए या फिर किसी धर्म को फैलाने के नाम पर हुए हैं. अब यह पहला बड़ा युद्ध बन रहा है जिस में एक तरफ देश भक्ति और जनशक्ति से लबाबदा युवा. यूक्रेन की परीक्षा लोकतंत्र की परीक्षा है. उम्मीद करें कि जीत युवाओं की हो, तानाशाहों की नहीं.

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