यौन संबंधों को ले कर बने कानूनों का लाभ उठाने के लिए अपराधियों ने एक नया व्यवसाय खड़ा कर लिया है- हनी ट्रैप का. इस में बड़ी आसानी से सैक्स के भूखे पुरुषों को फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप आदि से पहले दोस्ती की जाती है और फिर फोन नंबर ले कर मिलने का न्योता दिया जाता है.

यहां तक बात स्वाभाविक और 2 व्यस्कों का मामला है. हर पुरुष की चाहत होती है कि पत्नी हो या न हो, उस की गर्लफ्रैंड जरूर हो जिस से वह अपने सुखदुख बांट सके और संभव हो तो सैक्स संबंध बना सके. सिर्फ सैक्स संबंध बनाने के लिए यों तो वेश्याओं का बड़ा बाजार है पर उस में जोखिम बहुत है और लोग वहां जाने से कतराते हैं. हनी ट्रैप में वे फंसते हैं जो कोई  झमेला नहीं चाहते और केवल बदलाव, उत्सुकता या क्षणिक आनंद की खातिर कुछ रोमांचक करने को तैयार हो जाते हैं.

हनी ट्रैप में आने पर लड़की पुरुष के साथ अपनी सैक्सी अदाएं दिखाती है और कभी सैल्फी से तो कभी छिपे कैमरे से फोटो खींच लिया जाता है. कई बार ऐन क्रिटिकल समय पर दरवाजा खोल कर

3-4 लोग घुस जाते हैं जो लड़की के साथी होते हैं और जो ब्लैकमेल, लूट, मारपीट करने लगते हैं.

हाल के बने कानूनों ने हनी ट्रैप बिजनैस को खूब बढ़ावा दिया है. आजकल महिलाएं हनी ट्रैप के शातिर पुरुष पर किसी भी तरह का आरोप लगा सकती हैं और अगर मामला पुलिस में चला जाए तो न केवल पुरुष की जगहंसाई, जग प्रताड़ना होती है बल्कि घर में भीषण गृहयुद्ध भी छिड़ जाता है, जेल भी हो सकती है. यदि पुरुष इस जिद पर अड़ जाए कि जो हुआ वह सहमति से हुआ और अपराध नहीं हुआ तो भी पुलिस और अदालत उसे पहले जेल भेज देगी और सफाई देने का मौका महीनों बाद मिलेगा और लंबी अदालती लड़ाई के बाद ही छुटकारा मिलेगा. यही ब्लैकमेल का अवसर पैदा करता है.

स्त्रीपुरुष संबंध व्यस्क संबंध हैं और इन पर बनाए गए कानून असल में स्त्री को अधिकार नहीं देते, उसे और गुलामी की जंजीरों में बांध रहे हैं. जैसे जून में दिल्ली के एक मामले में हुआ जिस में 3 पुरुषों और 1 युवती ने 1 पुरुष को फंसाया.

उस पुरुष को लूटा तो गया पर वह पुलिस में चला गया और जो पता लगा उस से यह स्पष्ट है कि यह युवती जो अपराधियों के साथ है, खुद एक पीडि़ता ही है. वह इस तरह के अपराध में किसी लालच या भय के कारण शामिल हुई होगी. उसे जबरन चुग्गा बना कर फेंका गया. जो कानून उसे बचाने के लिए बनाया गया था, उसी कानून के अनुसार वह सिर्फ एक अपराध का हथियार थी.

वेश्यावृत्ति समाप्त करने वाले ज्यादातर कानूनों में वेश्याओं को अपराधी नहीं माना गया पर पुलिस उन्हीं को सब से ज्यादा लूटती है. इन कानूनों के बावजूद कोठों में रह रहीं या स्वतंत्र रूप से देह बेचने वालीं समाज व पुरुषों की शिकार हैं और कानूनों ने उन्हें और जकड़ दिया है.

कार्यक्षेत्र में यौन प्रताड़न कानून ने औरतों की आजादी छीन ली है. वे पुरुषों की तरह हंसबोल भी नहीं सकतीं क्योंकि पुरुष उन से डरते रहते हैं. उन्हें जोखिम के काम नहीं दिए जाते. उन की युवावस्था की अपील पर कोई विवाद न खड़ा हो जाए इसलिए कंपनियां उन्हें जिम्मेदारी वाले पद देने से कतराती हैं. जो कंपनियां उन्हें आगे रखने का जोखिम लेती हैं, वे उन का केवल सजावटी उपयोग करती हैं और सब कोशिश करते हैं कि उन्हें दूरदूर रखा जाए. अच्छे से अच्छे दफ्तर या कारखाने में औरतों के अलग गुट बन जाते हैं. जिन कानूनों से अपेक्षा थी कि वे लिंगभेद समाप्त कर के बराबर के अवसर देंगे, वे अब फिर उन्हें औरतों के अलग पुरातन बाड़ों में बंद कर रहे हैं.

औरतों के नहीं, समाज के विकास के लिए जरूरी है कि औरत का इस्तेमाल पुरुष के क्षणिक सुख के लिए नहीं हो, उसे समाज की बराबर की यूनिट सम झा जाए. जो एकतरफा कानून बने हैं, वे लिंगभेद को पहले से स्पष्ट कर देते हैं और औरतों के विकास के रास्ते बंद कर देते हैं. औरत साथी को पुरुष साथी की तरह सहजता से लिया जाए, यह भावना वहीं से पैदा नहीं करते.

मामला एमजे अकबर और तरुण तेजपाल जैसे पत्रकार का हो या जौनी डैप और ऐंकर हर्स्ट का हो सैक्सटौर्शन के मामलों में औरतें विक्टिम ही बनी रहती हैं. ये मामले दिखाते हैं कि औरतें आज भी वीकर सैक्स हैं और नए कानूनों या नई कानूनी परिभाषाओं ने वीकर सैक्स को बल देने के नाम पर उन के पैरों में बे्रसस बांध दिए हैं जो उन्हें कमजोर ही दर्शाते हैं.

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